________________ अपूर्व ग्रंथ युगल रत्न (1) मूर्तिपूजा का प्राचीन इतिहास -इस ग्रन्थ में शास्त्रीय प्रमाणों के अलावा कई अकाट्य ऐतिहासिक प्रमागों द्वारा तथा अंग्रेजों के भू खोद काम से प्राप्त हुई हजारों वर्ष पूर्व की जैन मूर्तियों के चिन्न वगैरह के जरिये मूर्तिपुजा की प्राचीनता एवं उपादेयता सिद्ध को गई है। साथ में कई लोग मूर्तिपूजा के विषय में अज्ञानता पूर्वक कुत किया करते हैं जिसके 239 प्रश्नों को सचोट उत्तर भी लिख दिया है। इसके अलावा 'क्या जैन तीर्थङ्कर भी डोरा डाल मुंह पर मुँहपत्ती बाँवते थे?" अर्थात् मुंहपत्ती हाथ में रखने के स्व-पर मत के प्रमाणों के अलावा हजारों वर्ष पूर्व की मूर्तियों के चित्र भी दिए गये हैं, पुस्तक पढ़ने काबिल है। इतना दलदार सचिन ग्रन्थ होने पर भी प्रचारार्थ मुल्य मात्र रु. 3) ऐजेन्टों को कमीशन भी दिया जाता है। इस ग्रन्थ में 37 प्राचीन चित्र भी हैं। (2) श्रीमान लौकाशाह--इसमें लौकाशाह कौन था ? उसने क्या किया ? जिसको 25 प्रकरणों द्वारा खूब विस्तार से लिखा है / लौंकाशाह विषयक आज पर्यन्त ऐसी किताब किप्तो ने भी नहीं लिखी है यह पुस्तक प्रमाणों से तो ओतप्रोत है ही पर साथ में शाह वाड़ो लाल मोतीलाल की लिखी ऐतिहासिक नोंध' नामक पुस्तक की भी सचोट समालोचना की गई है तथा लौंकाशाह के समकालीन एक कडूआशाह नामक व्यक्ति ने कडुआ मत निकाला जिसकी हिस्ट्री तथा उसके मत की नियमावली भी इस ग्रंथ के साथ जोड़ दी है यह अन्य प्रत्येक व्यक्ति के पढ़ने काबिल है इतना बड़ा सचित्र ग्रंथ होने पर भी मूल्य मात्र रु०२) है अधिक प्रतिए लेने वालों को कमीशन भी दिया जायगा। शीघ्रता कीजिये / इसमें 16 चित्र हैं। मिलने का पता:-... मूथा नवलमल जी गणेशमलजी कटरा बजार, जोधपुर (मारवाड़) मुद्रक श्री दयालदास दौसावाला द्वारा आदर्श प्रिंटिंग प्रेस, अजमेर में छपी 3-2