Book Title: Jain Jatiyo ke Gaccho Ka Itihas Part 01
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala

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Page 49
________________ ( ३७ ) थे । अतएव किसी खरतराचार्य के एक भी नया जैन बनाने का प्रमाण न तो कहीं मिलता है और न खरतरों ने आज पर्यन्त कई प्राचीन प्रमाण जनता के सामने उपस्थित किया है। तथा विश्वास है कि भविष्य में भी शायद ही उपस्थित कर सकें। ____ हम ऊपर जिन जिन गच्छों के आचार्यों द्वारा प्रतियोधित जैन जातियों के नाम लिख आए हैं, उनमें कई गच्छों के तो इस समय साधु तक भी नहीं रहे हैं। और कई गच्छोंके साधु भी रहे हैं पर उन्होंने प्रायः एकाध प्रान्त छोड़ कहीं अन्यत्र विहार ही नहीं किया, बस यह सुवर्णावसर खरतरों के हाथ लग गया, और उन्होंने ऐसे कालमें क्षेत्र में विहार कर भद्रिक लोगों को अपने उपासक बना, अपनी क्रिया रूपी फांसी उनके गले में डाल दी । और अधिक परिचय के कारण तथा विशेष समय निकल जाने से उनके ऐसे संस्कार पड़ गए कि हम खरतर हैं। खरतर यतियों ने उन लोगों के लिए कल्पित ख्यातें भी लिख डालीं जैसे कि:- " महानवंश मुक्तावली" "जैन संप्रदाय शिक्षा नामक पुस्तक में मुद्रित हुई है। पर जब ये किताबें मेरे देखने में आई तो मैंने इस विषय का साहित्य अवलोकन कर "जैन जाति निर्णय" नामक पुस्तक लिख प्रामाणिक प्रमाणों द्वारा पूर्व पुस्तक की समालोचना कर यह सिद्ध ____. महाजनवंश मुक्तावलि वगैरह पुस्तकें जो प्रमाणशून्य केवल कपोल कल्पित कथाओं लिख भद्रिक लोगों को श्रम में डालने का जाल रचा था पर आखिर असत्य कहां तक ठहरे इनके प्रतिकार में देखो 'जैन जाति निर्णय' नामक प्रमाणिक पुस्तक ।

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