Book Title: Jain Jatiyo ke Gaccho Ka Itihas Part 01
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala

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Page 52
________________ .. १७-खजांनची, यह मिन्नी गोत्र की शाखा है । इसके प्रतिबोधक कोरंटगच्छीय आचार्य नन्नप्रभसूरि हैं। ..१८-कांकरिया, यह चरड़ गोत्र की शाखा है । इसके प्रतिबोधक आचार्य श्री रत्नप्रभसरि हैं । जो वीरात् ७० वर्ष . १६-लुनाबत भी स्वतन्त्र गोत्र नहीं पर आर्य गोत्र की शाखा है । इसके स्थापक वि. सं० ६८४ में उपकेश गच्छाचार्य देवगुप्रसूरि हुए हैं। . २०-चोपड़, यह कुंकम गौत्र की शाखा है । इनको उपकेश गच्छाचार्य देवगुप्रसूरि ने वि.सं. ८८५ में बनाया है। • . २१-छाजेड़, यह वि. सं. ९४२ में उपकेश गच्छा. चार्य श्री सिद्धसूरि ने बनाया। ...., २२-संचेति, यह वि. सं० ४०० वर्ष पूर्व आचार्य रत्नप्रभसूरि द्वारा स्थापित हुआ। २३-नाहर, इसका गच्छ तपागच्छ है जिसको हम 'ऊपर लिख आये हैं। । २४-नवलखा. यह नागपुरिया सपागच्छाचार्य प्रतिबोधत श्रावक हैं। - २५-डागा, यह नाणावाल गच्छाचार्य प्रतिबोधित श्रावक हैं। २६-भणशाली, जोधपुर तवारीख में इस जाति की उत्पत्ति समय वि. सं० १११२ का लिखा है । तब मुताजी लिछमी

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