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के घर गई तो वहाँ खरतर गच्छ के आचार्य आये हुये थे, शाह की पत्नी ने उनको भद्रिकपने से विनति की कि महाराज ! आप भी प्रतिष्टा पर पधारें। बस ! दोनों गच्छ के आचार्य प्रतिष्ठा के समय पधार गए और वासक्षेप देने की आपस में तकरार हो गई, क्यों कि दोनों आचार्य आमंत्रण से आये हुए थे । अखिर यह निपटारा किया कि रामाशाह और उसका बड़ा पुत्र धवल इन दोनों पर तो वास क्षेप कोरंट गच्छाचार्य ने डाला; तथा रामाशाह की पत्नी और छोटे बेटे जगडू पर खरतराचार्य ने वास क्षेप डाला । इसका यह नतीजा हुआ । कि धवलशाह की सन्ताव कोरंटगच्छ की, और जगडुशाह की संतान खरतर गक्छ की क्रिया करने लग गई । इस प्रकार एक ही पिता के दो पुत्रों में गच्छ भेद डाल दिया गया ।
( ३ ) किराट कूपनगर में जयमल बोत्थरा ने श्री सिद्धाचल का संघ निकालने का निश्चय किया, और अपने कोरंट गच्छ के आचार्य को आमन्त्रण भेजा पर वे किसी कारण वशात् आ नहीं सके | उस समय खरतराचार्य वहाँ विद्यमान थे, जयमल ने उनको संघ में चलने का आमन्त्रण किया तब उन्होंने जयमल से यह शर्त की कि यदि तुम हमारा वासक्षेप लेकर हमारी क्रिया करो तो हम संघ में साथ चलें । बस - गरजवान क्या नहीं करता हैं ? संघपति जयमल ने भी शर्त को स्वीकार करली । उस दिन से जयमल की संतान कोरंटगच्छ की होने पर भी खरतरों की क्रिया करने लग गई ।
( ४ ) जोधपुर के दफ्तरी (बाफना ) ने भी इसी प्रकार से सिद्धाचल का संघ निकाला, उस समय अपने उपकेशगच्छा