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( ८४ ) जवन.सच्चू के साथ बाफनों का कोई खास तौर पर सम्बन्ध भी नहीं पाया जाता है। - वि० सं० १८९१ में जैसलमेर के पटवों ( वाफनों ) ने शधुंजय का संघ निकाला उस समय चासक्षेप देने का खरतरों ने व्यर्थी ही झगड़ा खड़ा किया जिसका इन्साफ वहाँ के रावल राजा गजसिंह ने दिया कि बाफना उपकेशगच्छ के ही श्रावक हैं वासक्षेप देने का अधिकार उपकेशगच्छ वालों का ही है विस्तार से देखो जैन जाति निर्णय नामककिताब । - १२ राखेचा-वि० सं० ८७८ में प्राचार्य देवगुप्तासूरि ने कालेरा का भाटीराव राखेचा को प्रतिबोध देकर जैन बनाया उसकी संतान राखेचा कहलाई पुंगलिया वगैरह इस जाति की शाखा है__ "ख. य. रा. म. मु० पृष्ठ ४२ पर लिखा है कि वि० सं० १९८७ में जिनदत्तसूरि ने जैसलमेर के भाटी जैतसी के पुत्र कल्हण का कुष्ट रोग मिटाकर जैन बनाकर राखेचा गौत्र स्थापन किया।" ___कसोटी-खुद जैसलमेर ही कि० सं० १२१२ में भाटी जैसल ने आवाद किया तो फिर ११७८ में जैसलमेर का भाटी को जिनदत्तसूरि ने कैसे प्रतिबोध दिया होगा। बहारे यतियों तुमने गप्प मारने की सीमा भी नहीं रखी।
१२-पोकरणा यह मोरख गौत्र की शाखा है और इनके प्रतिबोधक वीरन् ७० वर्षे आचार्य श्री रत्नप्रभ सूरि हैं।। - "खर० य० रा. म. मु० पृष्ट ८३ पर लिखा है कि जिनदत्तसरि का एक शिष्य पुष्कर के तलाब में डूबता हुआ एक पुरुष और एक विधवा भारत को बचा कर उनको जैन बनाया और पोकरणा जाति स्थापन को ।