Book Title: Jain Jatiyo ke Gaccho Ka Itihas Part 01
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala

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Page 63
________________ ( ५१ ) ड़िया जाति उपकेस गच्छ अर्थात् कँवलागच्छो पासक हैं और स्वतंत्र गोत्र नहीं पर आदित्य नाग गोत्र की शाखा है। ... -श्रीमान भैंसाशाह के बनाये हुये अटारू ग्राम के मन्दिर के खण्डहरों में वि० सं० ५०८ का एक शिलालेख ऐतिहासिक विभाग के मर्मज्ञ मुन्शी देवीप्रसादजी की शोध खोज से प्राप्त हुआ है। आपने अपनी 'राजपूनाना की शोध खोज' नामक पुस्तक में इस विषय पर अच्छा प्रकाश डाला है । इस सबल प्रमाण से सिद्ध होता है कि विक्रम की छटी शताब्दी में चोरडिया जाति भारत के चारों ओर फैली हुई थी। ____-श्रोसियों के एक चन्द्रप्रभ जिनका भग्न मन्दिर में गुरुवर्य रत्नविजयजी महाराज की शोध से टूटा हुआ पत्थर खण्ड मिला जिस पर वि० सं० ६०२ आदित्यनाग गोत्रे खुदा हुआ, उपलब्ध हुआ है। -इस विषय के और भी अनेक प्रमाण मेंने संग्रह किये है वह उपकेशगच्छ पट्टावलि में दिए जायंगे। यहां पर एक खास खरतरगच्छीय वशावली का प्रमाण उद्धृत कर दिया जाता है, वह वंशावलि इस समय मेरे पास विद्यमान भी है जो ३५ फीट लम्बी एक फीट चौड़ी ओलिया के रूप में है । प्रारंभ में नीलवर्ण पार्श्वनाथ की मूर्ति का चित्र बाद दादा जिनदत्तसूरि के चरण भी हैं । प्रस्तुत वशावलि में गोलेच्छों की उत्पत्ति इस प्रकार लिखी है। ___"खरतोजी चोरडिया गोलुग्राम में वास कियो उणरी २७ पीढ़ी गोलुपाम में रही जिणग क्रमशः नाम इण मुजब है (१) खरतो २ आमदेव ३ लालो, ४ कालो ५ जालन ६ करमण ७

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