Book Title: Jain Jatiyo ke Gaccho Ka Itihas Part 01
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala
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( ६७ ) "तप्तभटो बाप्पनागस्ततः कर्णाट गोत्रजः । तुर्य बलाभ्यो नामाऽपि श्री श्रीमाल पञ्चमस्तथा ।१६६ कुलभद्रो मोरिषश्च, विरिहियाह्नयोऽष्टमः श्रेष्टि गौत्राण्यमून्यासन, पक्षे दक्षिण संज्ञके ॥१७० मुन्चितिताऽदित्यनागौ, भूरि भाद्रोऽथ चिंचटिं कुमट कन्याकुब्जोऽथ, डिडूभाख्येष्टमोऽपिच १७१५ तथाऽन्यः श्रष्टिगोत्रीय, महावीरस्य वामतः .. नव तिष्टन्ति गोत्राणि, पञ्चामृत महोत्सवे ॥१७२ - (१) तप्तभट (तातेड़) (२) बाप्पनाग (वाफना) (३) कर्णाट (करणावट) (४) वलाह (रांका बांका सेठ) (५) श्रीश्रीमाल , (६) कुलभद्र (सूरवा) (७) मोरख (पोकरणा) (८) विरहट' (भूरंट) (९) श्रेष्टि (वैद्य मेहता) एवं नव गोत्र वाले स्नात्रीय प्रभु प्रतिमा के दक्षिण-जीमण तरफ पुजापा का सामान लिये खड़े थे।
(१) सूचिति (संचेती) (२) आदित्यनाग (चोरडिया ) (३) भूरि (भटेवरा) (४) भाद्रो (समदड़िया) (५) चिंचट (देसरड़ा) (६) कुमट (७) कन्याकुब्ज (कनोजिया) (८) डिडू (कोचर मेहता) (९) लघु श्रेष्टि (वधमाना) एवं नव स्नात्रीय पञ्चामृत लिए महाबीर मूर्ति के वाम-डावे पासें खड़े थे।
यह कथन केवल उपकेशपुर के महाजन संव का ही है
नाहटा, जांघड़ा, वैताला, पटवा, बलिया, दफ्तरी वगैरह। .
गुलेछा, पारख, गदइया, सावसुखा, बुवा नाबरिया चौधरी दफ्तरी वगैरह भी आदित्यनाग गौत्र की शाखाए हैं।

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