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( ५५ ) का० श्री उपक्रेशगच्छे ककुदाचार्य संताने प्र० श्री सिद्धसूरि पट्टे कक्कसूरिभिः शुभं ।"
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बाबू पू० सं० शि० द्वि० पृष्ठ ७७ लेखांक १८८९ । बाफना जाति बप्पनाग गोत्र का अपभ्रंश एवं शाखा है । उपरोक्त शिलालेखों से यह निःशंक सिद्ध हो जाता है कि बाफनों का मूल गोत्र बप्पनाग है और यह मूल अठारह गोत्रों में दूसरा गोत्र है ।
इसके प्रतिबोधक जिनदत्तसूरि के जन्म पूर्व करीबन १५०० वर्षे आचार्य रत्नप्रभसूरि थे । बाफना गोत्र के लिए जैसलमेर दरबार से इन्साफ़ भी हो चुका था कि बाफनों के आदि गुरु उपकेशराच्छाचार्य हैं ।
( विस्तार से देखो मेरी लिखी जैन जाति निर्णय किताब )
जब बाफना उपकेशगच्छ के श्रावक हैं तब बाफना की शाखा नाहटा, जांगड़ा, वैताला, पटवा, दफ्तरी, बालिया वगैरह ५२ शाखाएं तो स्वयं उपकेशगच्छ की सिद्ध होती हैं। फिर समझ में नहीं आता है कि इन प्राचीन जातियों को अर्वाचीन बतलाने में खरतरों ने क्या लाभ देखा होगा ?
खरतरों ! अब बाफना इतने अज्ञात शायद ही हों कि अपना २४०० वर्षों का प्राचीन इतिहास छोड़ ८०० वर्ष जितने अर्वाचीन बनने को तैयार हों ।
( ३ ) इसी प्रकार रांका बांका को भी खरतरों ने स्वतंत्र गोत्र लिख मारा है पर इनके मूल गोत्र से खरतरे अभी अज्ञात