Book Title: Jain Jatiyo ke Gaccho Ka Itihas Part 01
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala

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Page 58
________________ 'चार्य को आमंत्रण भेजा, पर वे न आने से खरतराचार्य को संघ में ले गए उस दिन से वे भी खरतर गच्छ की क्रिया करने लग गए। फिर भी वे अपने को उपकेशगच्छोपासक अवश्य समझते हैं। .. ... (५) कापरड़ाजी-का भन्दिर सँडेरा गच्छीय भंडारी -भानुमलजी ने बनाया था पर उसकी प्रतिष्ठा खरतराचार्य ने करवाई उस दिन से भानमलजी की संतान संडेरा गच्छ की होने पर भी खरतर गन्छ की क्रिया करने लग गई । इत्यादि -ऐसे अनेक उदाहरण मेरे पास विद्यमान हैं फिर भी जिस जिस समय यह क्रिया परिवर्तन हुआ उस उस समय तक तो बे लोग यह बात अच्छी तरह से समझते थे कि हमारा गच्छ और हमारे प्रतिबोधक आचार्य तो और ही हैं, तथा हम केवल पूर्वोक्त कारणों से ही अन्य गच्छ की क्रिया करते हैं । इतना ही क्यों पर आज 'पर्यन्त भी कई लोग तो इसी प्रकार जानते हैं । हाँ कई लोग अधिक समय हो जाने के कारण अब इस बात को भूल भी गए हैं । खैर ! जो कुछ हो पर महाजन वंश का मूल गच्छ तो उपकेश गच्छ ही है । खरतरों ने तो इधर उधर से छल प्रपञ्च कर लोगों को कृतघ्नी बना अपना अखाड़ा जमाया है। ___ खरतरों ने प्राचीन जातियों को अर्वाचीन बतला कर अपने उदर पोषण के साथ २ प्राचीन इतिहास का भी बड़ा भारी खून किया है । क्योंकि जिन जातियों का २४० वर्ष जितना प्राचीनत्व है उसको ८०० वर्ष का अर्वाचीन बतलाना जब कि बीच में १६०० वर्ष के समय में अनेक नररत्नों ने आत्म-बलिदान और असंख्य द्रव्य व्यय कर देश, समाज, और धर्म की बडी २ सेवायें

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