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( ३८ ) कर दिया कि खरतर यतियों ने जिन जैन जातियों को खरतर होना लिखा है वे खरतराचार्यों ने नहीं बनाई, पर इनके बनाने वाले महापुरुष और और गच्छ के थे। हां इस सत्य बात के कहने लिखने में खस्तरों की ओर से भले बुरे शब्द, और गालिये वगैरह सुनना तो जरूर पड़ा है, पर जनता पर सत्य का प्रभाव भी कम नहीं पड़ा है। यही कारण है कि जैन लोग अब अपने अपने प्रतिबोधक आचार्यों की शोध खोज में लग रहे हैं। और बहुत से लोगों का मिथ्या भ्रम दूर भी हो चुका है। इस हालत में खरतरों को किसी और मार्ग का अवलंबन करना नरूरी था; अतः उन्होंने हाल ही में अतिशयोक्ति पूर्वक जिनदत्तसूरि का जीवन मुद्रित करवा कर उन यतियों के लेख की पुनरावृत्ति करते हुये लिखा है किः- .
१ नाहटा । १२ संचेती | २३ दुधेड़िया | ३४ दफतरी ... २ राखेचा । १३ कोठारी | २४ खजानची |
| ३५ मुकीम : ३ भाणशाली : १४ पारख । २५ पुगलिया ३६ दुगड़ ४ नवलखा | १५ गुलेच्छा २६ कांकरिया ३७ जन्नणी. ५ डागा . - १६ झाबक ! २७ बांठिया | ३८ भंडारी ... ६ बहुफणा | १७ धाडिवाल २८ कटारिया | ३९ लुणावत ... " ७ भूणिया | १८ शेखावत | २९ सेठिया |४० सुखाणी ८ बोथरा | १९ नाहर । ३० पटवा । ४१ लोढ़ा ९ चोपड़ा | २० बलाई | ३१ फोफलिया ४२ जालोरी १० छाजेड़ | २१ बछावत । ३२ वडेरा | ४३ नवरिया , ११ वरडिया ' २२ हरखावत ३३ मेहता ।४४ श्रीश्रीमाला ।