Book Title: Jain Jatiyo ke Gaccho Ka Itihas Part 01
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala

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Page 17
________________ (b) "उपकेशवंश"-महाजन वंशका रूपान्तर नाम है और इसकी ___ उत्पत्ति करीब विक्रम की प्रथम शताब्दी के आस पास हुई है। (c) "ओसवाल"-उपकेशवंश का अपभ्रंश ओसवाल हुआ है और इसका समय विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी के आस पास का है। ३-जिसको आज कमला-कवला गच्छ कहा जाता है इसका मूल नाम उपकेशगच्छ है विक्रम की बारहवीं शताब्दी में भगवान महावीर के पाँच छः कल्याणक की, तथा स्त्री पूजा कर सके या नहीं कर सके की चर्चा ने उग्र रूप पकड़ा उस समय जिन्होंने खरतर पने से काम लिया उनका नाम खरतर हुआ और जिन्होंने कोमलता एवं नम्रता का वर्ताव रक्खा उनका नाम कमला पड़ गया । परन्तु उपकेश गच्छ वालों ने इस कमला शब्द को कहीं साहित्य के अन्दर काम में नहीं लिया है। वे आद्याऽवधि शिलालेखों एवं ग्रंथों में उपकेश गच्छ शब्द को ही काम में लिया और लेते हैं। __इतना खुलासा कर लेने के बाद अब में जैन जातियों के गच्छों का इतिहास लिख कर पाठकों की सेवा में रखने का प्रयत्न करूंगा। ___ जैन जातियों में मुख्य और प्राचीन तीन जातियाँ हैं:-१श्रीमाली, २-प्राग्वट (पोरवाल) ३-उपकेशज्ञाति (ओसवाल) इनमें श्रीमाल और पोरवालों के तो स्थापक आचार्य श्री स्वयंप्रभसूरि हैं, जो प्रभु पार्श्वनाथ के पांचवें पट्ट धर थे अर्थात् आचार्य केशी श्रमण के शिष्य और आचार्य रत्नप्रभसूरि के गुरू थे । बाद में इन दोनों जातियों की वृद्धि करने में उपकेश गच्छाचार्यों के अलावा विक्रम की आठवीं शताब्दी में शंखेश्वर गच्छीय उदयप्रभसूरि तथा

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