Book Title: Jain Jatiyo ke Gaccho Ka Itihas Part 01
Author(s): Gyansundar
Publisher: Ratnaprabhakar Gyan Pushpamala

View full book text
Previous | Next

Page 22
________________ ( १० ) वंश के प्रतिबोधक उपकेश गच्छचार्य थे और इनका गच्छ भी उपकेश गच्छ ही हैं । उप के शगच्छोपासक जातियां की गिनती लगानी इतनी दुर्गम है कि जितनी रत्नाकर के रत्नों की गिनती लगानी मुश्किल है पर विरात् ३७३ वर्ष में उपकेशपुर में जो बृहद्स्नात्र हुआ उस समय १८ गोत्र वाले स्नात्रीय बने थे । उन १८ गोत्रों का प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख अवश्य मिलता है । किन्तु उपकेशपुर में बसने वाले दूसरे लोगों का क्या क्या गोत्र होगा ? तथा उपकेशपुर के अतिरिक्त अन्य ग्रामों नगरों में बसते हुए महाजन वंश के क्या क्या गोत्र होंगे ? एवं कोरण्ट पर रहकर आचार्य कनकप्रभसूरि आदि श्राचार्यों ने अजैनों को जैन बना कर महाजन | वंश की जो वृद्धि की थी उसके क्या क्या गोत्र थे ? इत्यादि पर इस विषय का सिलसिलेवार कोई इतिहास नहीं मिलता है। संभव है इतने लम्बे समय में उस उत्कृष्ट उन्नति काल में और भी अनेक गोत्र होंगे ? किन्तु वर्त्त - मानं जितना पता मिला है उनको ही लिखकर संतोष करना पड़ता है क्योंकि दूसरा तो उपाय ही क्या है ? यदि हम इस समय इतना भी नहीं लिखेंगे तो विश्वास है पिछले लोगों के लिए यह मसाला भी नहीं रहेगा । बस ! इस कारण ही हमने इन बातों को लिपिबद्ध करना समुचित समझा है । . १ - महाजनवंश एवं उपकेश वंश और ओसवंश की स्थापना और वृद्धि करने वाले उपकेश गच्छ में श्राचार्य रत्नप्रभसूरि, यक्ष देव सूरि, कक्कसूरि, देवगुप्तसूरि, सिद्धसूरि । ककुदी शाखा के

Loading...

Page Navigation
1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102