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(३) मानव जाति का अमित कल्याण किया है, जिस धर्म में ऐसी महत्वपूर्ण बाते मौजूद है कि जिनके सामने आज कल की आश्चर्यजनक वैज्ञानिक खोज बच्चों की तोतली बोली के समान मालूम होती है, और जो धर्म अनादि काल से चला आता है, खेद है कि उसी के विषय में यूरोपीय और अन्य विद्वानों ने बड़ी बड़ी भूलें की हैं। इसका कारण यही है कि जैन धर्म के अनुयायियों ने अपने धर्म के विषय में बड़ी ही उपेक्षा की।
कुछ विद्वानों ने जैन धर्म पर नास्तित मत होने का दोष लगाया है, कुछ लोगों ने उस को बौद्ध धर्म की शाखा माना है, कुछ लोगों ने उस पर दर्शन-शास्त्र रहित होने का इलजाम लगाया है, कुछ लोगोंने यह भी कह डाला है कि जैन धर्म की उत्पत्ति शङ्कराचार्य के बाद हुई है और कुछ लोगो ने तो यहां तक कहने का साहस किया है कि श्री पार्श्वनाथ और श्री महावीर कल्पित पुरुष हैं और जैन धर्म के असली जन्मदाता गौतमबुद्ध हैं।
इस प्रकार पाश्चिमात्य विद्वानों को ही नहीं किन्तु पौरात्य विद्वानों को भी हमारी प्राचीनता, हमारे सिद्धान्त
और हमारे दर्शनशास्त्र के विषय में बडा भ्रम हुआ है। यह बड़े खेद की बात है कि विद्वान् जैनों ने, जिनको जैन समाज का आभूषण कहना चाहिए, बहुत समय तक इस