Book Title: Jain Itihas
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 84
________________ ७२ को तनिक भी परिग्रह रखना नहीं चाहिए । कदाचित् इन साधुओं में कुछ ऐसे भी होंगे कि जिनके जीवन ऐसे पवित्र हों किं वे समस्त जैनों की प्रतिष्ठा के पात्र बन सकें; परन्तु इस बात से हमारे इस मत का तनिक भी खंडन नहीं होता कि इनमें का अधिकांश भाग उस आदर्श पर जो कि महावीर ने जैन साधुओं के जीवन के लिए निर्धारित किया था जमा हुआ नहीं है । स्थानकवासी जैन साधुओं के जीवन की परीक्षा । यदि हम स्थानकवासी अर्थात् मूर्ति-पूजा न करने वाले संप्रदाय के साधुओं के आचार की परीक्षा करें, तो हमको मालूम होगा कि वे न तो अपने पास द्रव्य रखते हैं, न सवारी में बैठ कर फिरते हैं, न मिलकियत रखते हैं, न गोचरी के लिये आमंत्रण स्वीकार करते हैं, न नियमों के विरुद्ध एक ही स्थान पर बहुत दिनों तक ठहरते हैं, न यात्राएँ करते हैं, न मूर्ति पूजा करते हैं, न रंगीन वस्त्र धारण करते हैं और न अपना समय संसार के झंझटों में लगाते हैं । सारांश यह है कि वे शास्त्र-वर्जित सभी बातों से अलग रहते हैं और यथाशक्ति उस आदर्श जीवन का अनुचरण करते हैं जो महावीर ने साधुओं के लिये बतलाया है । ऊपर कही हुई बातों से प्रत्येक समझदार मनुष्य को विश्वास हो जायगा कि मूर्ति पूजक संप्रदाय के साधुओं का

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