Book Title: Jain Itihas
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 95
________________ ૮૩ ये निरर्थक पूजन विधियां व क्रिया- आडंबर आत्मकल्याण के साधन होना तो दूर रहा किन्तु व्यर्थ का बोझ है, क्यों कि मनुष्य निसर्ग से आत्मोन्नतिशील प्राणी है । जब पूजन विधियां बढती चली गई और उनसे अकल्याण की सम्भावना होने लगी तब स्वाभाविकतया लोगों के हृदय में आत्मा को संतोष देने के लिये किसी अच्छे साधन के खोज करने की इच्छा पैदा हुई और वे जुलमी साधुओं के शासन से छुटकारा पाने के लिए उत्कंठित हो उठे । लोकाशाह द्वारा मूर्तिपूजा का निषेध | ऐसी अवस्था में परिवर्तन होना बिलकुल स्वाभाविक था । नीचे लिखी हुई विचित्र घटना से अहमदाबाद के लोकशाह नामके एक बडे व्यपारी के चित्त को ऐसी ठेस लगी कि उसके जी में मूर्तिपूजा की निरर्थकता दिखाने की प्रशंसनीय इच्छा उत्पन्न हो गई और वह मनुष्य जाति की रक्षा करने में तत्पर हुआ । वह घटना इस प्रकार है कि जब वह एक पार एक मंदिर में गया तब वहां उसने किसी माधु को अपने अंध भंडार की व्यवस्था लगाते हुए और उनकी जीर्ण ग्रंथ शीर्ण अवस्था पर ओढा सांस डालते हुए देखा । नाधु ने बोकाशाह ने जीर्ण पोधियो की रक्षा करने में नहायता देने के लिये पूछा । पाशाह बहुत सुन्दर अक्षर लिखते थे और पे पड़े धर्मात्मा भी थे इसलिये उन्होंने पोथियों की नर

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