Book Title: Jain Itihas
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 96
________________ करने का भार अपने ऊपर ले लिया और तुरंत ही काम शुरू कर दिया। जब उन्होंने यह देखा कि सूत्रों में दिये हुए सिद्धांत बडे ही उच्च श्रेणी के हैं और उनमे न तो मूर्ति पूजा का विधान है और न जैन साधुओं को परिग्रह रखने और लौकिक सुख भोगने का तब उन्हें बडा भारी आश्चर्य हुआ । उन्हे मालूम हुआ कि ग्रंथों में जो सिद्धान्त लिखे हैं वे उन सिद्धान्तों से बिलकुल भिन्न थे जिनका प्रतिपादन उस समय के साधु किया करते थे। इस घटना से उनके चित्त में अचानक एक क्रांति पैदा हो गई और उनके विचार सर्वथा वदल गये । उन्होने प्रत्येक ग्रंथ की गुप्त रूप से दो नकले उतार ली जिनमें से एक नकल तो उन्होने साधु को दे दी और दूसरी नकल को अपने पास रख लिया। इसके बाद उन्होंने सूत्रो का गहरा अध्ययन किया और महावीर के सिद्धान्तो को खूब समझा । यद्यपि उनका जन्म और पालन पोपण मूर्ति पूजक सम्प्रदाय मे हुआ था, तथापि उन्होने मूर्ति पूजा को तुरन्त ही त्याग दिया और जैन समाज को जोरो के साथ यह कहा कि जो साधु मूर्ति पूजा की आज्ञा देते हैं वे धून हैं, क्यो कि सूत्रो में मूर्ति पूजा का विधान कही भी नहीं है । उनमे महान् आत्मिक बल था और इसीलिये वे अपने मत को साहस पूर्वक प्रकट करने मे जरा भी न घबराये । उन्होने उस समय के साधुओ की

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