Book Title: Jain Itihas
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 112
________________ ९८ विषय के सारे विवेचन में जो जो बातें प्रकाश डाल सकती हैं उन सब बातों का व घटनाओ का मैंने पूरा विचार किया है और तदनंतर ही मैंने अपना मत कायम किया है । मेरी दलीलों मे संभव है कि कोई ऐसी भी हों जो कि समाधानकारक मालूम न हों किन्तु मुझे इतना तो विश्वास है कि वे मेरे सूज्ञ पाठकों को उन पर विचार करने को तो अवश्य ही बाध्य करेगी। यदि ये वादग्रस्त विषय हम थोडे समय के लिये अलग भी रख दें तो भी मेरे इस मुख्य विषय की यह सत्यता सिद्ध करने मे किसी प्रकार की आपत्ति नहीं आती कि थानकवासी हो महावीर के असली व सच्चे अनुयायी हैं व श्वेताम्बर मूर्ति पूजक व दिगम्बर ये दाने संप्रदाय नकली हैं । इस कारण मेरे सूज्ञ आलोचकों से मेरा अनुग्रह है वे इस पुस्तक को पक्षपात भरे हृदय से न पढे किन्तु में मत को पुष्ट कर े के लिये जो जो प्रमाण मैने दिये हैं उन छानबीन करके उन्हें न्याय की तराजू में तोले व फिर इ विषय में अपना मत कायम करे । अन्वेषक

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