Book Title: Jain Itihas
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 111
________________ कारणों से इस सम्बन्ध में विस्तार पूर्वक लिखना नहीं चाहते । इस लिए हम पाठकों का ध्यान केवल उन पिछले पृष्टों की ओर आकर्षित करते हैं जहां कि हमने स्थानकवासी और श्वेताम्बर मूर्ति पूजकों के आचार और चारित्र की तुलना की है । जिन पाठकों ने दोनों सम्प्रदायों के साधुओं के दर्शन स्वयं किये हों, उनके नित्यप्रति के व्यहार को ध्यान पूर्वक देखा हो और उसकी जाँच की हो वे मेरे कथन की सत्यता को समझ सकते हैं । मैं समझता हूँ कि मैंने इस छोटी सी पुस्तक में उन कठिनाइयों और संकटों का पर्याप्त वर्णन कर दिया है जिनका सामना स्थानकवासियों को मूर्ति पूजक सम्प्रदाय की ईर्षा और घृणा के कारण करना पड़ा है। इसके साथ ही साथ इस संप्रदाय की उत्सत्ति कत्र व कैसे हुई यह भी बतला चुका हूँ। अब मेरे सूज्ञ पाठकों के लिये चार शब्द लिख कर इस विषय को समाप्त करता हूँ। __ इस विषय का विवेचन मैंने बिना किसी प्रकार के पक्षपात के व सब बातो का विचार करके ही किया है । जिन प्रमाणों को मैंने सामने रक्खे है, संभव है कि उनमें से थोड़े वादग्रस्त भी हों, किन्तु उनमे मेरी उन दलीलों की सत्यता मे जो कि जैन, बौद्ध व हिन्दू शास्त्रों के प्रमाणों से सिद्ध की गई हैं, जरा भी वाधा नहीं आ सकती। इस

Loading...

Page Navigation
1 ... 109 110 111 112 113 114 115