Book Title: Jain Itihas
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 110
________________ ९६ को कलंक लगाये हैं और उनके तरह २ के नाम रख कर चिढाया है । उन्हों ने स्थानकवासियों के विषय में मनमानी बातें कही हैं, उनके साथ बहुत कठोर व्यवहार किया है और उनको ढूंढिया कहकर बदनाम किया है । उन्होंने ने स्थानकवासियों को बदनाम करने में कोई कसर न की । उन्होंने ईर्षा और द्वेप के कारण स्थानकवासी साधुओं का इस बात पर उपहास तक कर डाला है कि वे अहिंसा के उच्च और कल्याण कारी सिद्धान्त पर जो कि जैन धर्म का सार है, बडी सावधानी के साथ चलते हैं । अहिंसा जैन धर्म का आदि तत्व है और जैन शास्त्रों के प्रत्येक पृष्ठ में उसकी झलक दिखाई देती है । अहिंसा का महान् और कल्याणकारी सिद्धान्त आर्यों के सभी धर्मों का प्रथम और मूल सिद्धान्त है । जो लोग इस सिद्धान्त पर चलते हैं उनकी हँसी उड़ाना और उनको बदनाम करना उत्तम और उत्कृष्ट वातों की जड पर कुठाराघात करना है । श्वेताम्बर मूर्ति पूजकों ने स्थानकवासियों का केवल यही दोष नहीं बताया किन्तु अपने आपकी और जैन शास्त्रों से विरोधी सिद्धान्तों की रक्षा करने के लिये उन्होंने स्थानकवासी साधुओं के पवित्र जीवन और निष्कलंक चारीत्र की ऐसी बुरी व अन्याय पूर्ण आलोचना की है कि उससे केवल स्थानकवासियों ही के विषय में नहीं किन्तु समस्त जैन धर्म के विषय में लोगों को भयंकर भ्रम हो सकता है। हम कई -

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