Book Title: Jain Itihas
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 108
________________ संपूर्ण क्षमा के सागर व संपूर्णता की मूर्ति थे, किन्तु उसके साथ यह भी आवश्यक है कि हम भी उनकी बतलाई हुई उपरोक्त बातों को अपने व्यवहार में लाने का भरसक प्रयत्न करें। साथ में यह भी आवश्यक है कि हम भी वैसे ही दयावान् और सर्वगुण सम्पन्न बनें और उन्होंने अपने जीवन में जिन दैवी आदेशों का अनुकरण किया था उनको हम भी अपनावें । केवल स्थानकवासी साधु ही महावीर के सच्चे शिष्य हैं। इस प्रकार स्थानकवासी साधुओं का जीवन, उन मोक्षगामी महात्माओं के उपदेश और आदेशों का एक छोटा सा किन्तु प्रत्यक्ष जीता जागता नमूना है। ___स्थानकवासी साधु तीर्थकरों के बतलाये हुए उत्कृष्ट जैन सिद्धान्तों के अनुगामी बनने की यथाशक्ति चेष्टा करते हैं और अपने आचरण को भी वैसा ही बनाउ है। चूंकि जैन धर्म शरीर की सुन्दरता को अथवा सुख को कुछ महत्व नहीं देता लेकिन वह आत्मा को सुन्दर और उन्नत नाना सिखलाता है, इसलिए स्थानकवाली साधु अपने शरीरकी सुन्दरता तथा सुखकी कुछ परवाह नहीं करते, किंतु वे अपना पवित्र और निकलक आचरण रखने की चेष्टा करते है और लौकिक पदार्थों और मोह से अलिप्त रहते हैं। यदि महावीर के

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