Book Title: Jain Itihas
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 99
________________ ८७ लिए उनको सत्य का पता लग गया और वे तत्कालीन असत्य विचारों और सिद्धान्तों का विरोध करने में समर्थ हुए । लोकाशाह ने जैन धर्म के असली सिद्धान्तों का प्रकाशन किया और लोगों में उनका प्रचार किया। इसका फल यह हुआ कि टोक जैन धर्म के उन श्रेष्ठ और उदात्त सिद्धान्तों को देखकर चकित हो गये जो कितनी ही शताब्दियों से साधुओं की धूर्तता के कारण दवे छिपे पडे थे । जिसके निमल हृदय में स्वार्थता का अंश मात्र नहीं था और जिसके सद्विचार, उपदेश और आचार केवल सत्य प्रेम से ही प्रेरित थे ऐसे धर्मवीर लोकाशाह के सरल, सष्ट और सुदर उपदेश की ओर अत्याचार ने घबराये हुए और सत्य के सहारे की खोज में लगे हुए जन समुदाय का लक्ष् विच गया और सत्य का प्रकाश उनके हृदय पर अंकित हो गया । यदि सच पूछा जाय तो लोफाशाह ने न तो कोई अपने नये सिद्धान्त स्थापित किये और न किसी दर्शन पद्धति के निर्माण का दावा किया। उन्होंने लोगों को जैन शास्त्रों में क्या लिखा है यह बतलाने में व उस समय के प्रचलित ऐहिक व सा से भरे हुए सिद्धान्तों मे वचने पर मार्ग मिलाने में हो अपना समाधान मान लिया । तगुरु फाशाह के पटाये

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