Book Title: Jain Itihas
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 50
________________ (३८) के लिये कोई प्रमाण नहीं मिलते। परन्तु इस आपत्ति में बहुत थोड़ा सार है क्यों कि यह मानना युक्तिसंगत नहीं है कि महावीर और पाटलीपुत्र के मध्य वर्तीकाल में अर्थात् दोसी वर्ष से भी अधिक समय तक जैनो के पास धार्मिक पथ दिखाने वाला साहित्य ही न था । इसी प्रकार यह मानना भी उतना ही असंगत है कि पाटलीपुत्र की सभा के पहले महावीर के समय में किसी दूसरे ही सिद्धान्त का प्रचार था और फिर उपरोक्त सभा मे एक नया सिद्धान्त गढ़ा गया । यदि उस समय पहले के सिद्धान्त अन्य मौजूद होते तो उनका उल्लेख उस सिद्धान्त में अवश्य पाया जाता जो पाटलीपुत्र की सभा में रचा गया बतलाया जाता है और साथ ही साथ वे हेतु भी लिख जाते, जिनके कारण प्राचीन सिद्धान्त-ग्रन्थों के स्थान मे नवीन ग्रन्थ रचे गये । परन्तु जैन साहित्य के समस्त संग्रह में इन बातों का उल्लेख कही नहीं मिलता। इसलिये हम प्रोफेसर जेकोबी की कल्पना को स्वीकार नहीं कर सकते । इसके साथ यह भी याद रखना चाहिये कि जैन ग्रन्थो में स्पष्ट लिखा हुआ है कि पाटलीपुत्र मे जैन सिद्धान्त का केवल संग्रह किया गया था, उनकी रचना नहीं की गई थी। इसके सिवाय प्रोफेसर जेकोबी की दलीले ऐसी मजबूत नहीं हैं कि हम जैन ग्रन्थो के स्पष्ट टेखों को अस्वीकार करें।

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