Book Title: Jain Itihas
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 81
________________ ६९ उत्तराध्ययन सूत्र के २३ वें अध्याय में हम देख चुके कि केसी और गौतम ने पार्श्वनाथ और महावीर के शासनों का एकीकरण किस तरह किया और पार्श्वनाथ के अनुयायियो ने किस प्रकार रंगीन वस्त्र त्याग कर महावीर के नियमों के अनुसार श्वेत वस्त्रों को धारण कर लिया । यद्यपि मूर्तिपूजक संप्रदाय अपने आप को "श्वेताम्बर " कहलाता है ( श्वेत वस्त्र धारण करने वाला ) तो भी यतियों को छोड़ कर इस संप्रदाय के साधु श्वेत वस्त्र धारण नहीं करते, जैसी के हम उनसे आशा कर सकते थे । इससे यह स्पष्ट है कि इस संप्रदाय ने जैन साधुओं के वस्त्रों के विषय में महावीर के आदेशों का सर्वथा अनुकरण नहीं किया । विमुख होगया आदर्श जैन साधु के जीवन की संक्षिप्त व्याख्या । यह बतलाने के लिए कि महावीर के असली उपदेशों और सिद्धान्तों से यह संप्रदाय किस तरह हम अब महावीर के आदेशो के अनुसार जैन साधु की व्याख्या करेंगे और फिर तुलना करके यह बतलायेगे कि मूर्ति-पूजक संप्रदाय के जैन साधु का जविन असली ऊँचे आदर्श मे किन किन बातों में गिर गया है । के जीवन जैन माधु को घर घर गोचरी - भिक्षा करके अपना भोजन प्राप्त करना चाहिये । उसे न तो स्वयं भोजन

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