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(४०) __ यह और अन्य जैन सिद्धान्त बौद्ध-सूत्रों में प्रायः उन्ही शब्दों में लिखे हुए मिलते हैं । जिन शब्दो में वे वर्तमान जैन सूत्रों में दिये हुवे हैं । ये वात बड़े महत्व की है और इससे अंगो की प्राचीनता के विशय में सभी संदेह दूर हो जाते हैं। इम एक बात से ही विपक्ष में जितनी दलीले उठाई जांय वे सब रद्द हो जाती हैं।
उपरोक्त दलीलें इस बात को सिद्ध करने के लिये पर्याप्त है कि देवद्धि के समय में श्वेताम्बरों के सिध्दान्त-ग्रंथ केवल लिपिवद्ध हुए थे। उस समय से पहले वे प्रायः कण्ठस्थ थे
और वे अब तक उसीरूप में चले आते हैं, जिस रूप में गणधर ने उनकी रचना की थी।
जैन सिद्धान्तों का ऐतिहासिक महत्व ।
अतएव इतिहास के महत्वपूर्ण प्रश्नों को हल करने में हम इस प्राचीन साहित्य से निर्भय होकर सहायता ले सकते है। इसी बात के आधार पर हम यह सिध्द कर सकेंगे कि दिगम्बर अर्वाचीन हैं और वे महावीर के कई सदियों बाद अपनी सम्प्रदाय से जुदा हुवे हैं। अपनी प्राचीनता के विषय में दिगम्बरों का दावा।
दिगम्बर यह कहते हैं कि सब तीर्थकर नग्न रहते थे, महावीर ने साधुओं का नग्न रहने का उपदेश दिया था और हमारे