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(४४) जो इतिहास के लिये वडे काम का है। परन्तु ऐसा करने से पहले जैकोबी द्वारा संपादित जैन सूत्रों की भूमिका में से एक अवतरण दिया जाता है जिससे यह मालूम हो जायगा कि वह अध्याय विश्वसनीय है। जैकोबी ने लिखा है कि " अब सब लोग मानने लगे हैं कि यह प्रायः ठीक ही है कि पार्श्व (जो जैनों के २३ वें तीर्थंकर थे और महावीर के २५० वर्ष पहले विद्यमान थे ) ऐतिहासिक पुरुष थे। महावीर के समय में उनकी संप्रदाय के नेता केसी नामके मुनि थे। केसी का नाम जैन सूत्रों में कई बार ऐसी गंभीरता के साथ आया है कि हमको उन लेखों के प्रामाणिक होने में कुछ भी मंदेह नहीं मालूम होता।" तेईसवें अध्याय का सारांश यह है:
केसी और गौतम जो जैन धर्म के दोनों संप्रदायों के ( अर्थात् पार्श्वनाथ और महावीर के संप्रदायो के ) प्रनिनिधी और नेता थे । अपने शिश्यों के सहित श्रावस्ती के निकट एक वाटिका में एकत्रित हुए। दोनो संप्रदायों में जैन साधुओं के महाव्रतों के विपय में और उनके वस्त्रों के रंग रूप और संख्या के विषय मे कुछ मतभेद था । उन दोनों ने मिलकर पिना वादविवाद कियेही इन मतभेदों के कारण समझकर एक्यता करली।