Book Title: Jain Itihas
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 69
________________ किंचित इशारा भी नहीं किया। हम इस अपने मत का समर्थन करने के लिए आगे चलकर कई दृष्टियों से इस प्रश्न पर प्रकाश डालते हैं: १ उपासकदशांग और आचारांग नामके दो जैन सूत्र इस विषय पर बहुत प्रकाश डालते हैं और इस लिये इन प्रों की छानबीन करेंगे। उपासकदशांग में महावीर के मुख्य दस श्रावकों के सविस्तार जीवन चरित्र दिये हैं और उसमें जैन श्रावकों के आचार व्यवहार के नियम और व्रत ठीक उसी प्रकार समझाये गये हैं जिस प्रकार आचारांग मे जैन साधुओं के लिए नियम और व्रत दिये है। श्रावक और साधुओं को आचार के नियमों को ठीक ठीक समझने के लिए खामकर इन्हीं दो ग्रंथों का आश्रय लेना पडता है । इन दो प्रामाणिक अंगों में व अन्य शास्त्रों में भी मूर्तिपूजा का जिसे मूर्तिपूजक मुक्ति प्राप्त करने का एक मात्र साधन बताते हैं, तनिक भी उल्लेख नहीं है। यदि महावीर मूर्तिपूजा को जैन धर्म का आवश्यक अंग समझते तो वे साधुओं और श्रावकों के व्रतों में मूर्तिपूजा का समावेश करने से कदापि न चूकते।

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