Book Title: Jain Itihas
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 37
________________ (२७) यह बडे खेद की बात है कि युरोपियन विद्वानों का समागम जैनों के साथ न होने से जैन धर्म के विषय में उनका ज्ञान अशुद्ध और पक्षपात से भरा हुआ है। यही कारण है कि उन्होंने जैन ग्रन्थों का __ अनुवाद करने में उन प्रन्थों के असली अभिप्राय और अर्थ को नहीं समझा और इसलिये जैन धर्म के विषय में उन्होंने अपने अशुद्ध मत कायम कर लिये। जैन धर्मकी प्राचीनता पर अन्तिम वक्तव्य । __ हमने पिछले पृष्टों में जैन धर्म को अतीव प्राचीन सिद्ध कर दिखाया है। बहुत से इस पर आश्चर्य करेंगे और हमारे इस मत को शायद स्वीकार न करेगे। उनका इस प्रकार संदेह करना स्वाभाविक ही है, क्योंकि भिन्न भिन्न धर्मों के अनुयायियों के हृदय में जैन धर्म के विषय में बहुत दिनों से विरोधाभाव घुसा हुआ है और हिन्दुओं एवं मुसलमानों ने जैनों के मन्दिरों का विध्वंस किया है और जैनों के धार्मिक साहित्य के बहुत से भाग को जला दिया है। यदि यह साहित्य उपलब्ध होता तो उससे इस बात का पत्यक्ष प्रमाण देने में बडी सहायता मिलती कि जैन धर्म शेष सभी धनों से प्राचीन और उत्कृष्ठ है । ___ हम ऊपर कह चुके हैं कि एक समय वह था जब जैन धर्म को बौद्धधर्म की शाखा माना जाता था परन्तु अब यह

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