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इन वीरो ने शिकार, बलिदान अथवा अन्य किसी भी कार्य के लिये किसी जीवधारी की जान लेने का कड़ा प्रतिरोध करके बेचारे गूंगे जीवनधारी पशुओ की रक्षा की और सर्वत्र सुख-शान्ति व समृद्धी प्रस्थापित कर दी ।
आत्म-त्याग, उदारता, सत्य-प्रेम और ऐसे ही अनेक सद्गुणों के लिए, जो कि मनुष्य को वास्तव में श्रेष्ठ बना देते हैं, क्षत्रिय लोग अति प्राचीन काल से प्रसिद्ध चले आते हैं । युद्ध के संकटमय समय में भी उन्होंने सञ्चरित्रता, धीरता, आत्म-निरोध और कर्तव्य परायणता के ऐसे प्रमाण दिये हैं कि जिससे उनकी संतान उनके शुभ नामों का स्मरण बड़े ही सन्मान और आदर के साथ करती है ।
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इन्हीं नर-रत्नों ने जिनमें असली श्रेष्टता और महानता ठूंस ठूंस कर भरी थी; जैन तीर्थकरों जैसी पवित्र आत्माओं को जन्म दिया । इन तीर्थकरों ने असंख्य जीवों की जानें बचाई और एक ऐसे महान् धर्म का प्रचार किया कि जिसका यशोगान बेजबान जानवर भी अपनी मौन भाषा में निरंतर गाते रहते हैं ।
जैन धर्म के विषय में भ्रम.
जिस धर्म का प्रचार ऐसे कर्मवीर योगियों ने किया है, जिस धर्म में परमोत्तम सिद्धान्त भरे पड़े हैं, जिस धर्म ने