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इन से पाचवीं पीढी में हुए, इन्हीं ऋषभदेव स्वामी ने जैन धर्म का प्रचार किया। वाचस्पत्य में ऋषभ को जिन देव । वतलाया है और शब्दार्थ चिन्तामणी में उनको आदि जिनदव कहा है। ____ यदि हम इससे यह अनुमान निकालें कि प्रथम जैन तीर्थंकर और जैन के संस्थापक ऋषभदेव, जिनको भागवत पुराण मे स्वयंभू-मनु से पाचवीं पीढी में बताया है, मानव जाति के आदि गुरु थे तो हमारा विश्वास है कि इस कथन में कुछ अत्युक्ति न होगी।
जैन धर्म अनादि है। किन्तु इस से यह न समझना चाहिये कि जैन धर्म का प्रचार ऋषभदेव के समय से ही हुआ है और उस से पहिले जैन धर्म का अस्तित्व ही न था क्यों कि जैन यह मानते हैं कि युगों का क्रम जिनको अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी कहते हैं, अनादि काल से चला आता है वह अनंत काल तक रहेगा और प्रत्येक युग मे चौवीस तीर्थंकर जन्म लेते रहते हैं और जैन सिन्द्धान्तों का प्रचार करते हैं ।
अब हम को इस मान्यता पर कि वैदिक धर्म प्राचीन भारत का सब से पहिला धर्म है विचार करना चाहिये । सर्व साधारण को यह विश्वास है कि वैदिक धर्म सब धर्मों से