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૨૮ अपना वर्ण-रंगत बदलकर फीकी रंगतका नहीं होता है, तैसेंही सज्जन चाहे पैसे कष्टमें भी आपका भव्य स्वभाव छोडकर दुर्जनता नहीं स्वीकारता है. प्राणांत तकभी जो अपनी प्रकृतिको विकृत नही होने देते है, वैसे सज्जनही सर्व धर्म सेवन के लायक हैं. और वोही सज्जनाकी करोडो दफै वलय लेनी मुनासीब है. मलीन त्तिवाले दुर्जन सर्वज्ञ कथित धर्म सेवनको नालायकही है. अच्छे आशयवाले सज्जन स्वपरका उपकार करके, सर्वज्ञ धर्मकी आराधन करके अंतमें अनंत अक्षय मोक्ष सुखको स्वाधीन करते है. इस प्रकार संक्षेपसे सद्गुरु कृपा योग द्वारा कथन किया गया अपना कर्तव्य विचार कर विवेक अंगीकार करके छोडने लायकको छोडनेको
और आदरने लायकको आदरनेको आत्मार्थीजन ज्यादा लक्ष देखेंगे. करने लायक धर्म करणी श्री सर्वज्ञ कथित शास्त्रानुसारसे यथाविधि करके भी अगर्व सह रहेवणे; तथापि यथाशक्ति अपने साधीभाइयों और भगिनीयोंके उचित कार्यो उचित मदद देकर उन्होंको ज्यादे तोरपर धर्ममें योजनेका प्रबंध कर देखेंगे यावत् गुणी जैनोंमस गुण ग्रहण करके गुणकी महत्ता बढायेंगे, और निगुणी पर भी अनुकंपा ला कर उनको गुणशाली बनाने के वास्ते वन सफै उतना उधम करेंगे, जगत्के तमाम जीवोंको अपने मित्र तुल्य गिनेंगे, किसीके साथ कवी भी दुमनाइ, विरोध न रखेंगे, और नीच, निदेव, पापी प्राणियों की तर्फ भी द्वेष न ल्यांतें विवेकस उनकी उपेक्षा । करंगे, यावत् उत्तम भावनामय अंत:करण बनाकर सावधानतासे