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व्रतका संरक्षण होता है, सिरपर झूठा कलंक नहि पडता है; यापद मर्यादाशील गिनाकर लोगोंमें अच्छा विश्वासपात्र होता है.
५७ कोइ हुइ प्रतीज्ञा पालन करनी. ___ अब्बल तो प्रतिज्ञा करनेकी वसतही पूर्ण विचार कर अपनसे अव्वलसें आखिरतक निभाव हो सके पैसीही योग्य (वनसके वैसी) प्रतिज्ञा करनी चाहिये. और कभी उत्तम जनने प्रतिज्ञा करली तो योग्य प्रतिज्ञाका प्रयत्नपूर्वक पालन करना गाको दम __ आजानेतकभी खंडित नहि करनी. विचार करके समझपूर्वक कोइ
हुइ लायक प्रतिज्ञा सोही सत्य और शुभ प्रतिज्ञा गिनीजाति है. तैसी सत्य और शुभ प्रतिज्ञासें भ्रष्ट हुए मनुष्य अपनी प्रतिष्टाको खोकर अपवादके पात्र होता है. अविवेक न होने पाये ऐसी हरदम फिकर जरुर रखनी. योग्य है. योग्य विचारपूर्वक कीइ हुई प्रतिज्ञा प्राणकी तरह पालनी ये दरेक विचारशील सुमनुष्यकी फर्ज है. सच्चे सत्ववंत पुरुष तो स्वप्रतिज्ञाकों माणसे भी ज्यादा प्रिय गिनकर पूर्ण उत्साहसे पालन करते है. फ... निर्मल मनके कायर-डरपोक मनुष्यही प्रतिज्ञा खोकर पत गुमाते है. - ५८ दोस्तदारसें छुपी बात न रखनी.
जिस मित्र के साथ कायम दोती रखनेकी चाहना हो तो तिनसे कुच्छभी पटतर-भेद-जुदाइ नहि रखनी. खाना और खीलाना, मनकी बातें पूछनी और कहेनी, और अच्छी वस्तु जरूरत हो तो देनी और लेनी ये छः मित्रताके लच्छन है.