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निंद लेनी, और स्वार्थमें हरकत डालनेवाली विकयाओंमेंही दिन खतम करना वगैरेः अकार्य करनेमें उत्सुक रहना, तथा उचित का येमे दुर्लक्ष देना; यावत् सुविहित सेवित सन्मार्ग छोडकर मरजी मुजब उन्मार्ग ही ग्रहण करना वही प्रमाद है.
इन्सान
१ मद्य-सुरापान या तो कोई भी नस्सेदार चीजके सेवन से अपनी या अपने कर्त्तव्य-धर्म संबंध का भान भूलकर बेभान वनजाना, यावत् उन्मत्त - मदमस्त होकर अहित अनुचित प्रवृत्ति स्वार्थ विनाशक खराब - बुरे मार्गका ही आदर करना, और वैसा ही करके संतोष मान लेना, अती उन्मत्तताका नाम मध कहा जाता है, जैसा उन्माद प्राणीको जन्म जन्म भ्रमण करवाता इंग्लीशमें उसकों Intoxication कहते हैं, जिसकी सोबतसें दीवाना और बेहाल बनजाता है. जैसे बुरे परिणाम जिस चीजके सेवनसें आवै उस चीजको सेवन करनी ही बेमुनासिव है. कोइ भी अधिकार, लक्ष्मी या ज्ञानके मदमें भी मूढजन वडा जुला करते है. एक भी बुरा आचरण - अपलक्षण सेवनमें मूढजन लख्खो अप लक्षन शीख लेते है, जिससे करके स्वपरकी पायमाली होनेका परि णाम हाथ लगता है और उसीसें अधोगति पाते हैं. जैसे अपलक्षण में दूर हो जाने के लिये अध्यात्मवित् चिदानंदजी -कपूर चंदजी महाराजने फरमाया है कि:પારમાર્યા
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( राग भैरव. ) - विरथा जन्म गुमायो, मूरख, विरधा जन्म गुमायो,