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लायक वस्तु यानि चावल वगैर: जयणापूर्वक शुद्ध किये हुवेही चाहियें.
७ फल-अनेक प्रकारकें उत्तम फलोंमेंसें रससहित पके हु नारियल आम वगैरः फल प्रभुजीके आगे धरकर परमोत्कृष्ट मोक्ष फलकीही प्रार्थना करनी; क्योंकि फलद्वाराही फल मिलसकता है. इस न्यायसे वैसे उत्तम देवादिकके दर्शन करनेके समय अवश्य उत्तम फल समर्पण मोक्षकी अभिलाषापूर्वक करनाही दुरस्त है. लौकिकर्मेभी राजा वगैराकी भेटपूर्वक भेट लेनेकी रीति प्रसिद्ध है. योग्य आदरपूर्वक उचित कार्य साधनेहारा सदा सुखीही होता है.
८ नैवेद्य-आपकों अत्यंत अभिष्ट मनहर होवै वैसा मोदकादिक नैवैद्य विशाल और पवित्र वरतनमें भरकर प्रभुके आगे रखकें आत्मार्थीजीव आपका अणाहारी गुण सहजही प्रकट करनेके वास्ते प्रभुकी प्रार्थना करे - यानि जैसी भावना लानी चाहिये कि - इस जीवने अज्ञान और अविवेकके वश होकर अनेक वख्त अनेक रसका स्वाद लिया है तोभी लालच जीव अभीतक तृप्तिही नहीं पाया. अब परमात्मा प्रभु के पसायसें इस आत्माका असंतोष दोष दूर हो जाओ। और सर्वशसे संतोषगुण प्रकटभावकों पाओं ! ! इस तरह गुंजास मुजब द्रव्य श्री जिनेश्वरजीकी अर्चा करके स्थिरचित्तसे प्रभुकी ही सन्मुख दृष्टि स्थापनकर देववंदन ( जधन्य-मध्यम-उत्कृष्ट चैत्यवंदन ) रुप भावपूजा करनेके वास्ते