Book Title: Jain Hitbodh
Author(s): Karpurvijay
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

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Page 314
________________ २९६ बंधन नहीं है. १०२ " मरन समान कोई विशेष भय नहीं है. " १०३ “ राग समान कोई अति १०४ " स्त्रीकटाक्ष अपना बचाव करनेहारे जैसा कोई शूर नहीं." १०५- " सदुपदेश जैसा कोई अमृत नहीं है. "" : १०६ " स्त्रीचरित्र समान कोई गहन चरित्र नहीं है. " न उगाया जावे उसके समान दूसरा १०७ " स्त्रीचरित्र कोइ चतुर नहीं. १०८ " असंतोष के जैसा कोई दूसरा दारिद्रय नहीं और पाचनाके जैसी कोई लघुता नहीं. " १०९ " संजम समान जीवित नहीं है. " ११० " प्रमाद जैसी कोइ जडता नहीं. " " १११ “ धन, यौवन और आयु ये तीनुं अस्थिर हैं. " "" "7 ११२ " सज्जन चंद्रकिरण जैसे शीतल है, " ११३ “ परवशता जैसा दुःख नहीं, और स्वतंत्रता जैसा मुख नहीं. " ११४ " तत्र स्वपर हितकारी वचनही सत्य है. " ११५ “ प्यारेमें प्यारी चीज माण है. " " " ११६ “ पापसें मुफ करें उसीको सच्चा दोस्त जानो. ११७ “ औसरपर दान देनेके समान दूसरा दानही नहीं " ११८ " गुप्त पाप समान कोइ शल्य नहीं. " ११९ " जगत् मात्र के साथ मैत्री रखने समान कोई आनंद नहीं ""

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