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आत्माका सच्चा धन–सच्चा कुटुंब अंतर में ही है, जिनकों मोह वश हुवा भाणी अज्ञान द्वारा भूल जाकर भ्रमसे झूठे धन कुटुंब मोहित हो रहा है. जैसें रुधिरसें लिप्त हुवा कपडा रुधिरसें साफ नही हो सकता है तैसें प्रमादसें मिलाया हुवा कर्ममल प्रमादसें दूर हो नहीं सकता. अप्रमाद यही आत्म साधनमें अनुकूल मित्र. मददगार है. खंतसें करके श्री जिनाज्ञाका आराधन करना वही सच्चा अप्रमाद है. वास्ते मद, विषय, कषाय, आलस और विकथा दूर करके सावधान हो सभी प्राणीपर समभाव वचन, तनसें शील- सदाचार पालनेकों हर्ष वेडा पार होने का सच्चा इलाज है.
रखकर, निर्मल मन, चित्तवंत होना, यही
प्राणांते भी दूसरे जीवकों त्रास नहीं देना, अपने खुदकों दुःख उटालेना; लेकिन दूसरोंको हरगीज दुःख नहीं देना. प्राणांत होने परमी कपायादिके तावेदार होके झूठ नहीं बोलना. जोरों पर प्राणीकों दुःख होवै, अहित होवे जैसा सच्चा बोलना वोभी झूठ के समान ही समझकर विवेकपूर्वक हित-मित ( चाहिये उतना हो ) स्पष्ट, धर्मकों हरकत न हो सके वैसा शोच विचार वोलना. ત્યાં ત્યાં ત્રિં વિષાર યુદ્ધ વોને સવવલ પ્રસ્તૂત્ર માળા માં प्रसंग आ जाता है. और उसीसें संसार में बहुत भटकना पडता वास्ते उपयोग पूर्वक ही बोलना- अदत्त भी चारों प्रकारका छोडना चाहियें - यानि तीर्थंकर अदत्त - श्री तीर्थकर देवने निषेध किये हुवे पदार्थ न लेना, गुरु अदत्त गुरु के हुकम शिवाय कोई चीज न
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