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५३ खल दुर्जनकोभी जनसमाजकी अंदर योग्य सन्मान देना.
सिरो लिखित नीति वाक्य सज्जनोंकों अत्युपयोगी है. उ नीतिके उल्लंघन क्वचित् विशेष हानि होती है. दौअन्य दोष के प्रकोपसँ खलजन सहामनेवाले को संतापित करनेमें वाकी नाह रखता है.
५४ स्व पर विशेषतासें जानना.
हिताहित, कृत्याकृत्य वालावलका विवेकपूर्वक स्वशक्ति देशकाल मानादि लक्षमें रखकर उचित प्रवृत्ति करनेवालेको हित अन्यथा अहित होनेका संभव है, वास्ते सहसा - विनशोचे काम नहि करनेकी आदत रख कदम दर कदम विवेकसें वर्तने की जरूरत है, सद्विवेकधारी (परीक्षापूर्वक प्रवृति करनेवाले ) का सकलार्थ सिद्ध होता है.
५५ मंत्र तंत्र नहि करना.
कामन, टोना, वशीकरणादि करनो करानो ये सुकुलीन जनका भूषण नहि है. वास्ते वने जहांतक तिस वातसें दूर रहेना. और परका मंत्र भेद करना नहि - कीसीका भेद कीसी को कहना नहि. और गुफत बात जहां चलती हो वहां खडा रहेना नहि.
५६ दूसरे पीराये के घर अकेला नहि जाना. यह शिष्ट नीति अनुसरनेमें अनेक फायदे है। इससे शील
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