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स्वकर्तव्य करनका न चुकगे असी आंतरिक आशा है. सर्वज्ञ परमात्मा श्री महावीरजीकी सब संतती प्रभुके पवित्र शासनमें कायम रहकर जगहितकारी शासनको ज्यौं शोभा बहै त्यो स्व(व कतव्य समझकर विवेकसे स्वशति छुपाये विगर उनका अमल करना खास अगत्यका है. वसंततीकों भी सुधारनेका वो उत्तम मार्ग है. मतलवमें सब दुःख दारिद्रय दुर्भाग्य दायक स्वच्छंदता मूल दोष मात्रको दूर करके अनादि अज्ञान अंधकार दूर करनेकों और सर्व सुखकारी सर्वज्ञ आज्ञा मूल सद्गुण मात्र सद्भावपूर्वक सेवन करके घटघट सत्तागत रहा हुवा अनंत अक्षय केवलज्ञान उद्योत प्रकट करने के वास्ते अपन सब पापी प्रमादकों दूर करके परम उल्लाससे सदुधम सेवन करेंगे तो अवश्य • अपने आसन्न उपकारी भगवान् श्री महावीरस्वामीकी तरह अनंत गुण रत्नदीपककी मालाद्वारा अपन सबको नित्य दीपोत्सवी होगी. तथास्तु ! ऐसे महा मंगलकारी दिन साक्षात् देखने के लिये अपन कर भाग्यशाली होयेंगे ?
अहा ! समस्त दुःख, कष्ट, या आपत्तिका मूलरूप काला मुंहवाला कुसंप कव नष्ट हो जायेगा ? और 'संप वहां ही जंए । अँसी उत्तम वाणीका जयघोष कव होयेंगा ? सुसंपके उत्तम बीज ज्ञान, विवेक, विनयादि पाने के लिये, और कृष्ण मुखवाले कुसंपके कनीष्ट बीज इा, अदेखाइ, अभिमान; अज्ञानादि निर्मूल करनेके लिये अपन का भाग्यशाली होयगे ? परम उपकारी परमात्मा