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हो पा हायसे करके उपाधि खंडी करनी हो तो ऐसी कुटेप रखनी. अन्यथा तो उरको स्वागदेनी उसमेंही सुख हैं. सभ्यजनकीभी यही नीति है. मुमुक्षु-मोक्षार्थी संत सुसाधुओंको तो वो कुटेक सर्वथा त्यागदेने लायकही हैं. ऐसी अच्छी नीति पालन करनेसेही पाणी धर्मक अधिकारी वनकर सर्वज्ञभाषित धर्मकों सम्यग् प्रमाद रहित सेवन कर सभाग्यके भागीदार होके अंतमें अक्षय सुख संपादन कर सकता हैं.
२४ वैरीका विश्वास नहि करना. विश्वास नहि करने योग्य मनुप्यका विश्वास करनेसे वडीहानि होती है, इस लिये पहिलसही खबरदार रहना कि जिस्से पीछेसे पश्चाताप न करना पड़े. काम, क्रोध, मद, मोह, मत्सरादिको अंनरंग शत्रु समझकर उन्होंका कवीभी विश्वास सच्चे मुखार्थीको करना योग्य नहि है. सर्वज्ञ प्रभुने पंच प्रमादोंको प्रबल शत्रुभूत कहे हैं.
जिस्के योगसे पाणी प्रकर्षकर स्वकर्तव्यसे भ्रष्ट हो यावत् वेभान होता हैं सोही प्रमाद कहे जाते हैं. मध, विषय, कपाय, निद्रा और विकथा यह पांच प्रमाद है. और यह पांचामसें एक हो तो भी मही हानिकारी है, और जब पांचों प्रमादोंके वश जो मनु५५ पड गया हो उस्का तो कहनाही क्या ? .. मद्यपानसे लक्ष्मी, विद्या, यश, मानादिकी हानि होती हैं सो जगत् प्रसिद्धही है.