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१३ किसीकों कवीभी झूठा कलंक नहि देना.
किसीको अ॒ग कलंक देनेरुप महान् साहसस बुरेही परिणाम - आनेके उग्र संभवसे वो सर्वथा निंद्य और त्याज्य है. दूसरेको दुःख
देनकी चाहना करनेवाला आपही आप दुःख मांग लेता है. कहेनावन है कि-'खड्डा खोदे सोही पडे.' इयाने जनका इतनीभी शिखावन पस है, जैसे कुशिक्षितको अपनाही शस्त्र अपनाही माण लेता है उन्हके साइश इ.काँभी समझकर सच्चे मुखार्थी होकर सत्य और हितमार्गपरही चलने की जरुरत रखनी उचित है. कहनावतभी चली आती है कि-'सांचकों काहेकी आंच है ?'
१४ किसीकोंभी आक्रोश करके नहि कहेना. - कोप करके किसीका सची पातभी कहनसे लाभके बदले गैरलाभ हाथ आता है, इस वास्ते आक्रोश करके कहना छोडकर सपरको हितकारी और नम्रताइसे सच्ची पात विवेकपूर्वकही कहनेकी आदत रखनी चाहीय. समझदार मनुष्यको लाभालाभका विचार करकेही चलना घटित है. यही कठिन सजन रीति कि जो हरएक हितार्थियों को अवश्य आदरणीय है. . ' १५ सबके उपर उपकार करना.
मेधकी तरह सम विषम गिनना छोडकर सबपर समान हित" बुद्धि रखनी. जैसें वृक्ष नीच उंच सकर्को शीतल छांउं देता है, गंगाजल सबका समान प्रकार से ताप दूर करता है, चंदन सबको समान गु