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सार बोल संग्रह.
2199932- . १ लोभी मनुप्य फर लक्ष्मी इकट्ठी करने में ही तत्पर-हुसिपार रहते हैं, मूढ कामी मनुष्य काम भोग सेवन में ही तत्पर रहते हैं, तत्त्वज्ञानीजन काम क्रोधादि दोषका पराजय करक क्षमादि गुण धारण करनेमेही तत्पर रहते हैं, और सामान्य मनुष्य तो धर्म, अर्थ, और काम यह तीनूका सेवन करनेमें ही तत्पर
___२ पंडित उन्हीकोही समझो कि, जो विरोधसे विरामकर शांत, समभाववंत हुवे होवें साधु उन्हीकोही जानो कि, जो समय और शास्त्रानुसार चलें; शशि.वंत उन्हीकोही समझो कि, जो प्राणांत तक भी धर्मका त्याग न करें; और मित्र उन्हीकोही जानो कि, जो विपत्तिम भागीदार होवै.
३ क्रोधी मनुष्य कभी सुख नहीं पाते हैं, अभिमानी शोकाधीन होनेसें कभी जय नहीं पाते हैं, कपटी सदा औरका दासपणाही
पाते हैं, और महान् लोभी और ममाण जैसे मनहूस मख्खीचूस __ नरकगति ही पाते हैं.
क्रोधके जैसा दूसरा कोई भवोभव नाश करनेहारा विष नहीं है; अहिंसा-जीवदयाके जैसा दूसरा जन्मजन्ममें सुख देने. चाला कोइ अमृत नहीं है; अभिमानके जैसा कोई दूसरा दुष्ट शत्रु नहीं है। उधमके जैसा कोई दूसरा हितकारी बंधु नहीं है; माया