Book Title: Jain Granth Prashasti Sangraha
Author(s): Parmanand Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 278
________________ है.1 दौरसेवामन्दिर-ग्रन्थमाला उदइय-मि छत्त तमोह-णासु, घत्तासुहचंद भडारउ सुजस-वासु।। तहिं देहि उवण्णा चिर सुह-पुण्णा, तिण्णि तणुम्भव परिमल मणा पत्ता : दुक्खिय-जण-पोसरण गिय-कुल-भूसण विबुह महीरुह वरणसधण' तहु पय सेवंति जिणहरि ठंति कइणारिठणेमिचरि।। पढमु ताहं लायण पहणालं, विरइउ पुणु विरयमि जेण अक्कमुहु उदापारु गुणुक्करिउ ।। लोणासंघाहिं धरधरणउं । अग्गोयवंसु गुण णलिण-हंसु , दाताही पिययम-साहीण, गोयल सुगोत्तु जंण लढथोत्तु। पिच्च जिरिंणद-भत्ति-भर-लीणउं । जिण-समय भत्तु राईव वत्यु ? तिपरदास पुत्तेहिं पउण्णउं, राजेहिंहारणु तहिं हु उं पहारण । दाण-पूय विणएहि सउण्णउं । तहु सुउ सुरणेहु सुह-लच्छि गेहु ; पुणु बीओ पुण्णोदयचंदो, बाटू सुसाहु करि-सुड-बाहु । उदयचंदु उवयार अणंदो। गयण। सुभज्ज तह गुण सहेज्ज , भामिणी चोचाही सुहु भावण, सुभयनाम पंच कय सुकय संच। णंदण तिण्णि हुया घर-पावरण । पढमउ भरिंगदु पाल्हा वरिंणदु, सहसराजु गुण-सहसहं भायणु, लाखू विदीउ दोदा तिदीउ । बच्छराजहो पियराइय मरतु । लक्खणु च उत्थो लक्खण पसत्यु, म मराज जगमलु पुरणु तीयउं, पुणु अरुदेव सेवासु सेउ । देव-सत्थ गुरु-पाय-विरणीयउ । पत्ता: पुणु छज्जीव-णि काय-दयावरु, पाल्हा साहुह सुउ विरणय अंग जुउ धील्हाणामें तासु पिया पदमासाहु सउल-ह-भायरु । काल्हाही सुउ तहि साथर गुणरिणहि सहदेवी पियरणाम सिय जीदाही पद्धंगिणि सोही, सहदेवी गंःण वे वि जाण , पुत्त-जुयल-णेहेण ण मोही। दीवा पोल्हा णिरु रणेह भाण। खेमवंतु खेतागरु णार, जो बाधू सुउ लाखू पउत्तु , गुरुदासु जि जगविंद-पियारउं । तह गुण वणणे सुरगुरु जहुत्तु । तीया पुत्तु दगाई जगि विक्खाया, तहु पिय एयएंवइ देहं जायदणं, एं सागउं पिय-दुक्ख घायणं । पुरषु चउत्थो चाउ-गुण-भायण, देवाही णामा सुह चरित्त, दाण-सील-विणएं सुह-पावण । जिणधम्म-रसायण-पाण-तित्त । पुणु बाधू स हुस्स तणुब्भउ, तहि गम्भि उवण्णउं कुल-णिहाणु, दोदा जो पयत्त महि गिब्भउ । कुल-कुवलय-पोसणु सेय-भारतु । बालाही पिययम मोहिल्ल, बुहयण-चिंतिय-सुह-कामधेरगु, जाटा णंदणेण सोहिल्लउ। सम्वत्य विणंमिय सुजस-रेणु । सूदाही जाया पिय उत्ती, जिणधम्म-लाह संतुट्ठ-चित्तु, विण्णि पुत्त-पुत्तहिं सउत्ती। सिरि लाहा साहु बुहाणि मित्तु । पाहा पढमु पहिय-विस्सामो, तहु पिय सपइन्वय बयणसार, बाहिरही पिय पूरिय-कामो । रायणंहे सुह-यरणं खीर-धार। सुय वहोरु उल्हो वे भासिय (?) मल-पडल-णासि एं सुकइ-उत्ति, धम्मभेण अण्णोण्ण पयासिय । दिवराजही ति महिहाणु जुत्ति । ... बाटा साहुहु णंदणु बीयउ,

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