Book Title: Jain Granth Prashasti Sangraha
Author(s): Parmanand Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 300
________________ ११२ वीनसेवामन्दिर-ग्रन्थमाला चरमभाग: पहाचन्द्र गरिगणा सुद पुण्णइं। पोमणंदि तह पट्ट उवण्णइं। पुणु सुह्चंददेव कम जायई, गणि जिणचंद्र तहय विक्खाई। विज्जाणंदिकमेण उवण्णई, सीलवंत तहु गुण-संपुण्णइं। पोमणंदि सिस कमेण ति-जायइं जे मंडलामरिय विक्खायइं। मालव-देस-धम्मु सुपयासणु, मुणि देविंदकित्ति मिउ भासणु । तह सिसु अभियवाण गुण धारउ। तिहुअणकित्ति पबोहण सारउ । तह सिसु सुदकित्ति गुरु भत्तउ, जहिं हरिवसु पुराणु पउत्तउ। मच्छर-उज्झिउ बुद्धि-विहीणउ, पुव्वाणरियहि वयण पय लीणउं । अप्पबुद्धि बुह दोसुण दिज्जउ, जं असुद्ध तं सुद्ध, करिव्वउ । एयहु सयल गंथ सु-पमाणहु, तेरसद्ध सहसई बुह जाणहु । संवतु विक्कमसेण गरेसहं, सहस पंचसय बावण सेसहं । मंडवगढ़ वर मालव देसई, साहि गयासु पयाव असेसई । णयर जेरहड जिणहरु चंगउ, णेमिणाह जिण-बिंदु अभंगउ । गंथ सउण्ण तत्थ यहु जायउ, चविहु संघु णिसुणि अणुतायउ। माघकिण्ह पंचमि ससिवारइ, हत्थणखत्त समत्तु गुणालई। ८६ परमेट्ठिपयाससारो (परमेष्ठी प्रकाशसार) कर्ता-भ० श्रुतकीर्ति रचना १५५३ मादिभाग दहपणसय तेवण्ण गयवासई पुण विक्कमरिणव संवच्छ तह सावण-मासहु गुर पचमि सहुगंधु पुष्णु तय सहस मालवदेसइगढुमांडव चलु, वहइ साहि गयासु महाबलु । साहिणसीरु णाम तह णंदणु, राय धम्म अणुरायउ बहुगुणु । पुज्जराजु वणिमंति पहाणई, ईसरदास गयंदहं माणइं। गत्थाहरण देसु बहु पावइ, प्रह-णिसि-धम्महु भावण भावइ । तहं जेरट णयर सुपसिद्धई, जिण चेईहर मुणिसु पबुद्धई। रणेमीसर-जिणहर-णिवसंतई. विरयहु एहु गंथ हरिसंतई। जइ सिंघु तह संघवइ पसस्थई, संकरु णेमिदासु बुहतत्थई। तह गंथत्थभेउ परियाणिउ, एउ पसत्थु गंथु सुहु माथिउ । प्रवर संघवइ मणि मणुराइय, गंथ-प्रत्थ-सुणि भावण भावइ । तेहिं लिहा [व] इ णाणा गंथई, इय हरिवंस पमुह सुपसत्थई । विरइय पढम तिमहि ? वित्थारिय, धम्मपरिक्ख पमुह मण हारिय । पढहिं भव्व जहिं पडिय-लोयई, संतिहोइ सुणि प्रत्थमरणेयई। पत्तापुर गयर गरेसहि गामह देसहं मुणिगण सखयलोय सहें घणु कणु मणि सारई धम्मुढारई करहिं संति परमे पहो। इय परमेट्ठि पयाससारे भरूहादि. गुणेहिं षण्णण संकारे प्रप्पसुद-सुदकित्ति जहासत्ति कहाकवु विरयं णाम सत्तमो परिच्छेप्रो समत्तो । संषि ७॥ इति पर प्रकाशसार ग्रंथ समाप्तः । ............

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