Book Title: Jain Granth Prashasti Sangraha
Author(s): Parmanand Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust
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१६२]
वीरसेवा मन्दिर ग्रन्थमाला
११८
माणिक्करणंदि
३ लोहाइज्ज (लोहार्य) माणिक्यनन्दा
२६ वजसूरिगणि माणिक्यराज
५७, ५६, ६१ वजसूरि मुनि (नय-प्रमाण-ग्रन्थकर्ता) मारुवचन्द
२३ वम्मीय (वामीय) मारुतदेव (पिता-स्वयंभूदेव)
१. वररुचि माहव (माधव) चंद (मलधारि)
२१ वामण माहवषेण (माधवषेण)
४ वामीय-वास माहुर (माथुर) (संधायरियहो-संघाचार्य) ५६ वारायण (वादरायण) माहिंद सेण (भट्टारक)
११७, १३५ वासव मुनि मुनिदेव
वासवचन्द्र मेरुकित्ति
विज्जाणंदि (विद्यानंदि) ११२, ११६, १२०, १२२ मौनिदेव
४३ विजयसिंह (बुध)
११७, ११६, १२३ यशःकीर्ति (भट्टारक) ३७, ३८,४१, ४२, ४ विजयसींह (पंडित)
११८ रइधू (महाकवि) ६४, ६६, ६७, ७१, ७७, ७६.८३. विजय (सेन) ___१, १५, १७, १०१, १०२, १२४
विजयसेन रइधू पंडित ७०, ७५, ७६, ७८, ८८, ६३, ६६, ११३,
विणय मयंकु (विनयचन्द्र)
१०८ विष्णहेण
११६ रइधूबुह
विनयचंदु
१०६, ११०
विपुलकीति (मुनिवर) रत्नकीति
विबुष श्रीधर रयणकित्ति (रत्नकोति भट्टारक) ३३, १३०
विमलकिति रयण (पंडित)
१०६
विमलसे) रविषेण (प्राचार्य) पद्म-चरित्रकर्ता .
६६, ७७ १, ११, १८ विमलसेन
४१, ४३ राजशेखर
२५ विमलसेन (मलधारी देव) रामनन्दी
विशाल रामभद्र
२० बिसालकित्ति (विशालकीर्ति) राहव (पंडित)
११८ विशालकीर्ति लक्षण (लक्ष्मण कवि) १६, २७, २६, १०१.६ विश्वनंदी लक्सण पंडित
१२९ बरुणकुमार लक्सरणीह १०४ विष्णुमंदि
३,४२ लक्खण (लक्ष्मण कवि) १. विष्णसेन (ऋषि)
११, ३५ लक्ष्मण (कवि)
६, ३१, ५६ विसयसेणु (विषयसेन मुनिवर) ८८, १०६, १११ लक्ष्मीचन्द
१३. वीर कवि लखनदेव (लक्ष्मणदेव)
११ बीरिंतु (वीरचन्द) लालू (लक्ष्मण) १० बीर कवि (बार)
३५,५६
५४
१८, २०
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