Book Title: Jain Granth Prashasti Sangraha
Author(s): Parmanand Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust
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है.
४५,६२
१५०
१८,४७,४६
३०,३१
१२४
०
वीरसेवा मंदिर ग्रन्थमाला ससिलेहा (शशिलेखा)
११७ सिंघो सहजपाल
६८,६९ सिद्धपाल सहज़ा
६६ सिरिचंद (श्रीचंद) सहरणपाल
७,१०३ सिरिपहु (श्रीप्रभ) सहपाल कवि
११३ सिनियपाल (श्रीपाल) सहदेउ (सहदेव)
सिरिपालु सहदेवी
सिरिवल्लभ सहसराज
७४,७६,८१,५३,६० सिरिहर (श्रीधर) सागरविजय
३५ सिरिहर (श्रीधर) प०३ सादल साहु
६१ सिरिहरु (श्रीधर) साधारण
६३ सिरिहलु साधारण ब्रह्म
१२०,१२१,१२२ सिवएव सिवदेउ (व) साधारण साहु परि०२
१४६ सिवदासु साधारणही
६० सुहडपउ (सुहृद्प्रभ) साधारण
६६ सुहडसेठ्ठि साधारणु (पुत्र करमूपटवारी)
६३ सुहडादेवी साधाहिय
७० सीय (सीता) साधाही (भार्या वीरदास)
४३ सीवही साधाही
४४ सीहमल्ल सारंग (साहु) दूसरा पुत्र हेमराज ४. सीहल्ल सारंगसाहु
सीहु (सिंह) सारंग साहु
१०३,१०५ सुअव्व (माता त्रिभुवन स्वयंभू) सारंगु
४० सुभकरम (मा, भा०) साल्हरण
सुकलालउ साल्हणु
१० सुतणु साल्हार (साहु)
१३० सुदंसणुसिट्ठि (सुदर्शन श्रेष्ठी) साल्हाही
सुपटु साल्हे
* १०० सुपटु (सुपट साधु) प०२ सासुत्ती साहा (शाखाचंद)
६. सुप्पडु प०२ साहारण (साधारण कवि) ११३,११४,११५,११६ सुभद्द (सुभद्र) साहारणु प०२
१४५ सुभद्दादेवी (सुभद्रादेवी) साहारणु
२२ सुमह साहलु
१७ सुरजन (पंडित) साहुल (पिता लक्ष्मण कवि)
सुरजन साहु सिउगणु (शिवमण) प०२
१४८ सुलोचना
0
सुपट्ट
१२५,१२६
२०

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