Book Title: Jain Granth Prashasti Sangraha
Author(s): Parmanand Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 312
________________ १२४] वीरसेवामन्दिर ग्रन्थमाला एयह सव्वहं मज्झि पहाणउ, सत्थ-पुराण-भेय-बहु जाणउ । कलिकालेंजि प्राणुखरियउ, चेयण गुण प्रखंड विप्फुरियउ । तिण्णिकाल रयरगत्तउ अंचइ, सुद्ध धम्म जो ग्रह-णिसु संचइ । जेण लिहाइ पराण सुहं करु, काराविउ अपमत्तें मणहरु । सो हरुसीह साहु चिरु णंदउ, सज्जण चित्तहु जणिया गंदउ । घता पोमाबइ पुरवाड वंसिउ वणिउ कुल-तिलउ । हरसिंघ संघविहु पुत्तु, रइधक गुणगण णिलउ।। इति श्रीपाल चरित्र पंडित रइधु कृतं समाप्तम् । आमेर भंडार प्रति सं०१६३१ (दिल्ली पंचायती मंदिर प्रति सं० १६७३ से संशोधित) मुाण पउमणंदि तिरयण णिहाणु, सिवणंदि सीसु तहो गुण पहाणु । तहो णंदणु मुणियणपायभत्त, वुच्छिय जणाण पूरण सुसत्त । पढम भीखमु परियण सहारु, णिव्वाहिउ जे चउ संघ भारु । पुणु तहो मणूउ माणदु जाउ, जिणधम्म पुरंधरु विगय पाउ । जिणदासु पुणु वि सव्वहं समत्यु, सिवदासु पवर णामेण सत्थु । पंचमु रुकसुख्खु गुणगण पबीण, छ?मउ चितू जिण समय लीणु। पुणु सत्तमु उत्तम जीव दुक्ख, अवहत्थिय विहल जणाण दुक्ख । घत्ता ९६ पाश्र्वपुराण कवि तेजपाल रचना काल सं० १५१५ आदिभागगुण-वय-तब-सायरु उवरि जसायरु णिरुवम सासय-मूह गिलो। पणविवि तित्थंकर कइयण सुहयरु रिसहु रिसीसर कुल तिलम्रो॥ देविदेहिं णुप्रो वरो सियरो जम्मबुही पारणो, कम्मारीणवि इसणो भय हरो कल्लाण मालायरो । झाणे जेण जिग्री चिरं प्रणहिलो कम्मट्ठ पुट्ठासवो, सोयं प.स जिणिंदु संघवरदो वोच्छ चरित्तं तहो ।। (इसके आगे चौबीस तीर्थंकरों का स्तवन है)घत्ता संसारो वहि तारण कुमइ णिवारण विगय दोस गुण गण णिलया। गीयम पमुह भडारा णिज्जियसारा पणवेप्पियु तिहुवण तिलया ॥२॥ जो पंच महव्यय धरणधीर, सुइ समिति गुत्ति भूसिय सरीरु । जो तुरियउ भायरु धम्म कयायरु रेहइ जिरणमइ मत्ति रउं। सावय-वय उत्तिउ वसण विरत्तउ, सेवदासु वणि विगय-भउ ।।३ तहो णंदण णियकुल कमल मित्तु, सव्वासा पूरण जासु चित्तु । जदुकुल कुवलय रयणीस तुल्लु, पर उवयारहं जो मणि प्रमुल्लु । काराविय बहु संतीय मेण, लच्छिहि फलु गिहिउ सुहमणेण । जिण चरण कमल गंधोवएण, तणसिंचिवि कलि-मलु-हीराउ चित्तिजेण । सम्मत्तरयण भूसिय णियंगु,. जो पालिय सावय वय अभंगु । दाणेहि गुणेहिं विप्रइ षयीण, बुहयणभत्तिए जसु चित्तुलीण। मायरिहिं लोभेण जे पूरियासु, अवगष्णिय वहुदुज्जणु दुरासु । णामेण मदो पिय सुह-णिहाणु, सम-बसण-तिमिर-हरणेकू भाण । रिणयजस धवलिय जे भुवरण सत्यु, जे विद्ध सि णामें परम भव्य

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