Book Title: Jain Granth Prashasti Sangraha
Author(s): Parmanand Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 328
________________ २४० : वीरो साहु जियहि सुलद्ध पाहु । सोयारु सुणाण गुण गण सरगाहु, एक्क या चित चित्ति लाहु । पंडिय ठक्कुर कण्हपुत्त, उवयारिय वल्लह परममित्त । कइ पुष्फयंतु जसहर चरितु, किउ सुट्ठ, सद्द लक्खरण विचित्तु । पेसहि तर्हि राजलु कउलु प्रज्जु, जसहर विवाह तह जणिय चोज्जु । सयलहं भव-भ्रमण भवंत राई, महु वंछिय करहि निरंतराई । ता साहु समीहिउ कियउ सव्वु राउलु विवाहु भव-भवण भब्बु । बक्खाणि उ पुरउ हवेइ जाम, संतु वीसल साहु णाम । जोयरिण पुरवरि णिवसंतु सिठ्ठ साहुहि धेर सुत्थियणहु घुट्ठु । पण सट्ठि सहिय तेरह सयाई, णिव विक्कम संवच्छर गयाइं । वसाह पहिल्ल पक्खि बीय, रविवार समित्थिन मिस्सतीय। चिरुवत्थु बंधि कइ कियउ जंजि, पaडिया बधि महं रइउ तं जि गंधव्वें कण्हड गंदणेण, प्रायहं भवाई किय थिर मरणेण । महु दोसु ण दिज्जइ पुब्विं कंइउ, कई बच्छराई तं सुत्तु लइउ । वोरसेवामन्दिर ग्रन्थमाला धत्ता जो जीवदयावरु गिप्पहरण करु बंभयारि हय-जर-मरण । सो माण णिसंभरणु धम्मु णिरंजण पुप्फयंतु जिणु मह सरण ॥३० पावरिण सुभणि मुद्धाबंभणि, उरुप्पों सामलवण्णें । कासवगोत्तिं केसवपुत्तिं, जिण पयभत्तिं धम्मासत्तिं । वय संजुत्तिं उत्तम सत्तिं, विमलियसं किं महिमाणं किं । पाहासय तु डि कइरणा खड, रंजिय बुह सह कय जसहर कह जो प्रायष्ण चंगर मण्णइ, लिहा लिहावइ पढइ पढावइ । जो मणि भावइ सो गरु पावर, विहुणिय षणरय सासय संपय । जण वय गीरसि दुरियिमलीमसि, करिणदायरि दुसहे दुहयरि । पडिय कवालइ गर कंकालइ, बहु रंकालइ भइ टुक्कालइ । पवरागारि सरसाहारि, सहिं चेलि वरतंबोलि । महु उवयारिङ पुगिं पेरिउ, गुण भत्ति ल्लउ ण महल्लउ । होउ चिराउसु बरिसउ पाउसु, तिप्पs मेइरिण धरण करण दाइ णि । विलसउ गोमिणि णच्चउ कामिणि, घुम्मउ मंदलु पसरउ मंगलु । संति वियंभउ दुक्खु सुि भउ घमुच्छाह सहुं र गाहि । सुहु दउ पय जय परमप्पय, जय जय जिणवर जय भय भय हर । विमलु सु केवलु गार समुज्जलु, महु उप्पज्जउ एत्तिर दिज्जउ । मदं प्रति कब्बु कति, जं हीणाहिउ काई मि साहिउ । धत्ता तं माय महासइ देवि सरासइ णिहय सयल संदेह-दुह । महु खमउ भडारी तिहुवरणसारी पुप्फयंतु जिण धमण कह ।। ३१ इय जसहर महाराय चरिए महामहलरगण्ण करणा हर महाकइ पुप्फयंत विरइए महाकब्वे चंडमारि देवय मारितराम धम्मलाहो णाम चउत्थो परिक - समतो ॥४

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