Book Title: Jain Granth Prashasti Sangraha
Author(s): Parmanand Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust
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१४८]
विउसिरि णाम प्रवर सुपहाणी,
बायल भडू मरणाहर गारउ, परमषम्म रहबर घुर धारउ । चंदू भज्ज सयल गुणसारी, ग्राम गयगसिरि प्रणय पियारी
ससि मुहई जिम इंदह इंदाली ।
पताराहू गेहि उवण बेवि पुत्त णं चंदरवि । सिगर पढमिल्लू भय समही हरणाई पनि ॥५
दाण-मारण सम्मत सुरेबइ, रह-सोहग्ग सुजस गं देवइ । प्रतिहि दाणु प्रणु दिणु बहु दिजद्द, चविह संघ विगत विरज्जइ । सासु सरीरि पुत्तु उप्पण्ण मारास सरिह सुबसु मरगुर । मासुकष्णु णामेण मनोहरु, चिर गंव में मांडल शिव । गेहरिण सासुस्व गुण सारी, राम राइसिरि पह-सुपियारी । परियर अब जचि वणिज्यद तर बीबउ पुराणु बिरइन्छ । एवहि मक्कि गरुड पुरिसत्ता, तबणि जासु सुयण गुरण कित्तसु ।
लहु भीखमु पुग्णालय संमुध, धम्मधरा रुहू सिंचरण प्रभुभ । सिज गरण तिय रूपा रुव हर६, दाण पुष्ण चलणिय महासई 1 भीखम भज्ज पढो गुण जुत्तिय, सीमणिकेय जब ग पुत्तिय । सिद्ध गुण तरणब मे बिकुल मंडल, मी बीउ भाउ मह संल । मी भरज पाल मण मोहम, गृह सिहर सांस किरण गिरोहल । चहू बघु मदु चिक भासित, जासु सुजसु बुह्मण सुपयास्ति ।
दादू साहू जिसरि मत्सर, पुरिंस सीह मय सीस पवित्तख ।
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बासु भज्य पदमा गुणसारी, स्वरासि बल्लह सुपियारी ।
धमयाहार सत्य पुरणु पोख, तिविह पत्त पीजिय संतोस ।
घसा
बो मुद्ध कुवार ग्रामकिय, या साहूगा रूव-रह-संकिय । सीला-हरण बिहूसिय देहिय मुणिवर विषय दाण सुसाहिब ।
लेहाविउ एह गुण शिहाणु कल्लोल निहि ॥ निसुमंत कहंत भवियरण जनमरण होइ दिहे ॥६॥
महु भीखम् पुष्णालय संभ
कुबरि उपरि सुत तिग्णि उवण्ण, सुजस पुंज कव्वह वणें कई । गं रयणत्तय धम्मडु कारण, कम्पतरु जरण दुक्स शिवारण ।
धम्म घर कह सिंचन प्रमुख सउ गण तिय रूपा रूपहरण, दाण- पुण्ण-वेलरिणय महासइ । भीखमु भज्ज पढो गुणतिय, सील णिकेय जरणय खं पुत्तिय ।
दादु साहु पढम सुउ भासिउ, जे सुय खारणु दाणु सुपयासिउ ।
जसहरु बीउ भुवरिण जस सायद, रणमरणसीहू तहु लहु बच मायरु ।
सिउ गुण तरणय देवि कुल मंडल, मी बीउ भाउ मह खंडल । मारण भज्ज पाबुल मण मोहन, मुहससिहर ससि किरणा - गिरोहन । चंदु बंधु मंदु चिद भासिङ, जासु सुजसु बुहबरण सुपवासिठ । तासु भन्ज पदमा गुणसारी,
दादु णारि उहयसु-मनोहरि,
रह-पी वेदि काम घरि ।
हम भज्जत साधिय परवण, सच्छि पयक्ति अंग सुह लक्शण ।
कमराखि बत्लहसुपियारी ।

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