Book Title: Jain Granth Prashasti Sangraha
Author(s): Parmanand Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 337
________________ जनग्रन्य-प्रशस्तिसंग्रह [१४९ बीई मुदकुंवरि णामंकित, जा सोहग्ग स्व-रह-संकिया। सीलाहरण विभूसिय देहिय, मुणिवर विणय-दाण सुसणेहिय। कुवरि उपरि सुब तिपिउवगाइ सुजसु पंज कम्यह वष्णे का। रणं रयगत्तय धम्म कारण, कप्पतरुव जण दुक्ख-णिवारण । दादू साहू पडमसुउ मासिक जे सुय गाणु दाए सुपयासिउ । जसहर बीउ भुषणि बस सायक, एयणतीहु तहु मह पर भाया । सदू पारित हा सुममोहरि, शंस पीहवे वि कामह परि । पडम भज्ज रुह सासुय सण, मच्छि पयसिपंग सुह सराण। सिउसिरि णाम मवर सुपहासी, ससिमुह जिम इंदह इंदाणी। दाण मारण सम्मत सुरेखा, रह-सोहग्ग सुजस णं देवा। प्रतिहि वाणु पण दिणु बहु विवाद, पर बिह संघ विउ विरइया। तासु सरीरि पुत्तु उप्पण, माणस सरिह सुवसु मण गुण्णउ । मासकण्णु णामेण मणोहरु, चिर संदउ माडउणिव पर। गेहरिणतासु स्वगुण सारी, शाम राइसिरि पह सुपियारी । परिपणु अवरु जहां वणिज्जा सउ बीयउ पुराण विरइजा, एयहि ममि गाउ पुरिसत्तणु, बणिउ जासु सुयण गुण कित्तण। दादूसाहु जिणेसरि भत्तउ, पुरिस सीहु वय सील पवित्तउ। अभयाहार-सत्य पुणु मोसह, तिविह पत्त पीणिय संतोसहु । पतालेहाविउ एह गुण णिहाण कल्लोल णिहि. णिसुरणंत कहंत भवियण जगमण होइ दिहे ॥७ संवच्छ सोलह सइ उत्तर, उपरि सत्तबरि सह संजुत्तर। मग्गिसिरहं सिय पंचमि हिम्मत, गुरु वासरु गरिद.......। जोगु मुहृत्तु लग्गु णवत्तुषि, सुहृदायक ससिह रुवसु जुत्तवि। चंदवार गढ दुग्ग दुन्गिबह, संघाहिव चेयाले मन्मह। रामपुत्त पंगारव निहिबउ, विम सुइकिति कई से विहिवउ । . सुकरि वि जो भविषण भासइ, बोहि माह तह देऊ सरसइ। एंदउ भवियण धम्म गुलात वंदउ जइण संधु मन-मुक्काउ। गंदर कम्मू पाउडर माण्ड, एंबउ दीपुभुवणि सु पहाण। दउ............गरिदुर, गंदउ चूहरचंदु जणिष्टुत । एंवउ साहु सधारण संदर, वंदउ राम गरुव गिरि मंदा । गंदउ पढमसीह जे साहिउ, पारसंगु सयलु वि प्रवगाहिन । एयह पमुह संघु णंदउ चिरु, सुह संपय समूह णव-णिहि विर। रगंदउ पडइ सुणइबर काणह, गंदउ भावसुद् मणि माइ। पत्तागंदउ गुज्जरगुट्टि परियण पुत्त कलत्तम्जुउ । बबलगि कह हरिवंस जाम ससि रवि पटल भुउ॥ मामेर मंडार प्रति

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