Book Title: Jain Granth Prashasti Sangraha
Author(s): Parmanand Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 332
________________ परिशिष्ट २ लिपि प्रशस्तियाँ पुष्पदन्त के प्रादिपुराण, बाराबंकी की लिपि-प्रशस्ति (सं० १५२१) घत्ता तहें पुत्त चयारि हयारिमल्ल, सिरि पउमसिंह जिट्ठउ अतुल्ल । लच्छीहरु माणिकु मरिण समाएँ, घेना रायालय दीवमाणु । घत्ता पणविवि रिसहेसरु विरिणय पणसरु लोयालोय पयासणु। वरमुत्ति रमण यरु जम्म मरणहरु कम्म महारि विरणासणु । मय नयण बाण ससहररामएसु संक्छरेसु पच्छइ गएसु। विक्कमरायहो सुइ सेय पक्ख एवमी बुहवारे सचित्त रिक्खु । गोबग्गरि णयरि पिउ डूंगरिंदु, हुय पय पाडिय सामंत विदु। तहो सुउ सकित्ति धवलिय दियंत, सिरिकित्तिसिंह रिणव लच्छिकंतु । सिरि कट्ठसंघ मंडण मुर्णिदु, गुणकित्ति जईसरु जए अणिदु। जसकित्ति कित्ति मंडिय तिलोउ, तहो सीसु मलयकित्ति जि असोउ। गुण भद्दु तहो पट्टिसूरि, जें जिणवयणामिउ रसिउ भूरे। सिरि जइसवाल-कुलगह-ससंकु, सिरि उल्लासाहु सया प्रसंकु । वहो जाया गयसिरि णामषेय, सहि सुभ हंसराजु दया अमेय। उल्हा चउधरि यह णारि अण्ण, भावसिरि रिणय गुण पसाष्ण । सिरि हंसराय चउपरिय घेर विज (य) सिरि भजा महिया । तहो सुय गुणसायर सुह पउरेसर . परिमिय मय गण रहिया । तहि लल्ला रयणु सुबुद्धि पामु, मयणुजि वीरु मंडेहिह्मणु। सिरि पउमसिंह भज्जा सुपुज्ज, वीरा गामें वरगुण समुन्न । तहें सुउ-सोलिग णामेण धीरु, सूमा घरिणी एसहु जणि प्रभोरु । वीई वल्लह लडहंग बग्ग, वीधो हिहाण सय दल करम्म । अण्ण जि परिणी मीया पहिल सिरि पउमसिंह घरे लीलसिक्स। तहें चारि पुत्त हिय पियर चित्त, सिरि चित्त बालू डालू विचित्त। तीयउ कुल दीवउ सो पपच्छु, तह मयणवालु चउथउ पसत्यु। " १४४

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