Book Title: Jain Granth Prashasti Sangraha
Author(s): Parmanand Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust
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१२८]
बोरसेवामन्दिर प्रन्यमाला
इय सिरिपाल महाराय चरिए जय पयड सिद्धचक्क परमातिसय विसेस गुण णियर भरिए बहुरोर-घोर-दृट्ठ-यरवाहि-पसर-णिण्णासणे। धम्मई पुरि सस्थपय पयासणो भट्टारयसिरि जिणचंद सामिसीस बह्म दामोयर विरइए सिरि देवराज गंदण साहु णक्खत्त णामंकिए सिरिपालराय मुक्त गमण-विहि वण्णणो णाम च उत्थो संधि परिच्छेप्रो समत्तो॥
१०१ पाश्र्वनाथ चरित
कवि असवाल
(रचनाकाल सं०१४७९) आदिभाग:सिव-सुह सर सारंग हो सुय-सारंगहो सारंग कहो गुण
भरियो। भणमि भुषण सारंग हो खमसारंगहो पणविवि पास
जिण हो चरिमो॥ भाविय सिरि मूलसंघ चरण, सिरि बलयारयगण वित्थरण। पर हरिय-कुमम पोमायरिउ, मायरिय सामि गुणगण भरिउ । धरमचंदु व पहचंदायरिओ, पायरिय रयण जस पहु धरियो। धरपंच महव्वय कामरण, रणकय पंचिदिय संहरण । वरधम्म पयासउ सावयह, वयधारि मुणीसर भावयहं । भवियण मण पोमारणंदयरु, मुणिपोमणंदि तहो पट्ट बरु । हरि समउ ण भवियणु तुच्छ मणु, मणहरइ पइट्ट जिणवर भवणु। वर भवरण भवणि जस पायडिउ, पायडु ण प्रणंग मोहणडिउ । णडिया वय रयणत्तय धरण, धर रयणत्तय गुणवित्थरण।
कुलुखित्ति पयासमि पहु माहासमि, संघाहिव हो वहो परिणद हो , इयं जंबूदीवहं पहाण, भरहंकिउ णं पुर एव णाण। खेत्तंतरि देसकुसठ्ठ रम्म, दो वीसमु जिण कल्लाणु जम्मु । कालिदिय सुरसरि मज्झ गाई, दस्सा छणयंतरि पक्खु णाई। करहलु वरणयरु करहलुसुरम्मु, यणिव परिपालणि पयलहइ सम्मु । चहुवारण वंसि परि कुरुहणाई, भोइव भोयं किउ भोयराउ। माइक्कुदेवि सुन परिमयंद, चंदुवकुवलय संसारचंदु । जसुरज्जि पुव्व परिसाहि मारण, संघाहिवेण विज्जइ पमाणु। सयचउदह इगहत्तरि समेय, माहव धरण सणिवासर पमेय । रयणमय बिंब जिण तिलक सिद्ध, तित्थयरणामु कुल पाउ बद्ध । तहो जय रज्जिउ कय पुहइ रज्जु. प्ररिकुल कयंतु पुह पुहइ रज्जु । तहो समइं रएउ गुणगण पसत्थु, लेहाविउ संघाहिवेण गंथु । जदुवंस विकासणुभाण सेउ
बंभुवाय पालउ बह्म एउ। घत्ताएहु रज्जि धुरंधरु उण्णयकंधरु रिणव कुवेर पहचंद गुरु । णयकयसुज्जिणालउ चउवीसालउ मंतत्तरिण पह संतियउ ।'
तहो भज्जा तिण्णि कुसुवा पहिल्ल, सुअकरम समरासह गूण गरिल्ल । सूहव बोई एक्खत्त कुमर, मायरि पउमा लक्खरणहे एवर । हुव पंच पुत्त गुणगण महंत, धीरत्तणेण ण मेरु संत। करमसिंह समरणक्खत्त सीहु, तुरियउ सुमकुमर अमरसीहु।
घत्ता
तहो पट्टवर ससि णामें सुहससि, मुरिण पय-पंकयचंद हो :१॥

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